Tuesday, March 2, 2021

संघर्ष ही जीवन है


 आशाओं के तिनके लेकर
अभी घरौंदा बुनी बया।
चपल चंचला लगी कौंधने
नहीं जरा भी करे दया।

देख झरोखे चिड़िया बैठी
नीड़ बनाती तिनके से।
नीर नयन से टपक रहे थे
शूल कहीं पे चुभने से।
झूले पर आकर जो बैठी
यादें झोंका उड़ा गया।
आशाओं के.....

जीवन की खुशियों को लेकर
अभी बुने ताने-बाने।
झंझावात संग शाख हिली
उड़े कहाँ कोई जाने।
भूकम्पी सी आहट देकर
झटका घर को गिरा गया।
आशाओं के.......

बिखरे तिनके लेकर बैठी
मन में फिर से जोश भरा।
साहस मन में ठान लिया तो
कठिनाई से मन नहीं डरा
फुगनी पे देखा आस लिए
बना रही थी नीड़ नया।
आशाओं के.........
©® अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार


9 comments:

  1. अच्छी कविता अच्छे अंदाज में लिखी गयी !

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. तिनके-तिनके से जोड़ा घरौंदा बिखर जाय तो भी पंछी शोक नहीं मनाती, फिर से वही जोश खरोश से जुट जाती है,
    यही तो अंतर है इंसान और पशु-पक्षियों में, वे दुःखी नहीं होते और हम


    बहुत सही

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  3. बिखरे तिनके लेकर बैठी
    मन में फिर से जोश भरा।
    साहस मन में ठान लिया तो
    कठिनाई से मन नहीं डरा

    थके मन में उत्साह भरती सुंदर सृजन सखी,सादर नमन

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  4. ज्ञानवर्धक लेख

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  5. साहस मन में ठान लिया तो
    कठिनाई से मन नहीं डरा
    फुगनी पे देखा आस लिए
    बना रही थी नीड़ नया।
    बेहतरीन सृजन सखी !

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