Wednesday, January 19, 2022

ज़िंदगी अभिनय नहीं


 ज़िंदगी अभिनय नहीं
यह सत्य तुम पहचान लो।
कर्म से पहचान होती
यह बात सच्ची जान लो।

ख्वाहिशों का बोझ सिर पे
काम कुछ करना नहीं है।
स्वप्न में बीने रुपैया
दाम कुछ भरना नहीं है।
डींग भरता जो हमेशा
शेखचिल्ली वो मान लो।
ज़िंदगी अभिनय......

आँखों में चश्मा काला
धूप हल्की बोलते हैं।
हाथ खीसे में दबाए
शान में बस डोलते हैं।
मेहनत करती नाम रोशन
सत्यता यह जान लो
ज़िंदगी अभिनय..........

भागती गाड़ी समय की
पकड़े वही जीतता है।
आलस्य की दौड़ चलकर
राह कंटक सींचता है।
जगमगाना हो दीप सा
कर्म करने की ठान लो।
ज़िंदगी अभिनय.........
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

चित्र गूगल से साभार

16 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२१-०१ -२०२२ ) को
    'कैसे भेंट करूँ? '(चर्चा अंक-४३१६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत सुंदर रचना,अनुराधा दी।

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    1. हार्दिक आभार ज्योति जी

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  3. ख्वाहिशों का बोझ सिर पे

    काम कुछ करना नहीं है।

    स्वप्न में बीने रुपैया

    दाम कुछ भरना नहीं है।

    डींग भरता जो हमेशा

    शेखचिल्ली वो मान लो।

    ज़िंदगी अभिनय.....

    बहुत ही सुंदर रचना

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. बहुत सुन्दर !
    शीत-लहर बीतते ही इस सलाह पर गौर किया जाएगा. फ़िलहाल तो रजाई ओढ़ कर लेटे हुए ही हैं.

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  5. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  6. कर्म का महत्व समझाया सुंदर नवगीत सखी ।
    अप्रतिम।

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  7. भागती गाड़ी समय की
    पकड़े वही जीतता है।
    आलस्य की दौड़ चलकर
    राह कंटक सींचता है।
    जगमगाना हो दीप सा
    कर्म करने की ठान लो।
    ज़िंदगी अभिनय....
    कर्म की प्रधानता और आलस्य का त्याग करने का संदेश देती लाजवाब रचना
    वाह!!!

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  8. सही कहा । सुन्दर सृजन ।

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    1. हार्दिक आभार अमृता जी।

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  9. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक आभार आलोक जी।

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