Monday, June 4, 2018

यह कल की ही बात थी


           यह कल की ही तो बात थी
            जब मेरे हाथों में
            मेहंदी लगी थी
            कर सोलह श्रृंगार
            मैं दुल्हन बनी थी
            बारात लेकर आए थे
            तुम मेरे अंगना
            खिड़की से मेरा छुप कर
            तुमको देखना
           यह कल की ही तो बात थी
            खुशियां हीं खुशियां थीं
            सब जम कर नाच रहे थे
            चुपके से हम तुमको
            तुम हमको देख रहे थे
            यह कल की ही तो बात थी
            मांग में सिंदूर भर कर
            किया था तुमने वादा
            तुम मेरी अर्धांगिनी हो
            प्रिये पूरा करूंगा हर वादा
            यह कल की ही तो बात थी
            विदा होकर में ससुराल आई
            तुमको पाकर खुशी से फूली न समाई
            हंसी खुशी बीते थे दिन चार
            तुम्हारे जाने की घड़ी आ गई
             यह कल की ही तो बात थी
            आंखों में आंसू छुपाकर
             तुमसे लिया था वादा
             तुम जल्दी वापस आओगे
             तुमने भी किया था वादा
             यह कल की ही तो बात थी
             तुम्हारे सपनों में खोई हुई थी
             कि किसी ने मुझे आवाज दी
             तुम्हारे शहीद होने की
             मुझको खबर मिली
               एक पल में सब कुछ बिखर गया
                    अभी तो दुनियाँ बसाई थी         
            यह कल की ही तो बात थी
            अभी तो हाथों की मेहंदी भी न छूटी थी
            अभी तो तुमने मेरी मांग भरी थी   
             सब एक झटके में उजड़ गया
             मंगलसूत्र के मोती बिखर गए
         जो देखे थे साथ सपने
           सपने बन कर ही रह गए
            पर शहीद की विधवा हूं मैं
            यह गौरव मन में भर गया
          ***अनुराधा चौहान***
      नमन है बारम्बार देश के शहीदों को     


      

19 comments:

  1. प्रिय अनुराधा जी --- आपकी रचना पढकर मुझे वीर रस के कवि आदरणीय हरिओम पवार जी दो पंक्तियाँ याद आई
    उन दो आँखों में सातों सागर हारे होंगे जब मेंहदी रचे हाथों ने मंगल सूत्र उतारे होंगे !!!
    उस पीड़ा की क्या कहिये -- कौन लेखनी सक्षम है पर शहीद की विधवा का ये अंतर विलाप निशब्द कर रहा है | सचमुच नमन है देश के जांबाज वीरों को - जो नव विवाहिता पत्नी के प्रेम को दरकिनार कर अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन करते हैं | आपका स्वागत और आभार |

    ReplyDelete
  2. प्रिय अनुराधा जी ... सच में लेखनी में इतना दम कहाँ कि वो एक शहीद की विधवा के एहसासों को पन्नों पर उतार पाए, मैं पूर्णतया रेनू जी से सहमत हूँ पर आपकी लेखनी में वह धार है जिसने इस एहसास को पन्नों पर उतार कर हमारे शहीद जवानों को श्रद्धांजलि और उनकी विधवाओं के मर्म को उकेर कर रख दिया । बहुत-बहुत साधुवाद आपने क्या देख कर मुझे Google पर फॉलो किया नहीं जानती पर आपकी वजह से एक अच्छे समुदाय से रूबरू होने का मौका मिल रहा है उसके लिए धन्यवाद।
    My blog https://Neelima Kumar.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. आप सभी को मेरी रचना पसंद आई यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है सादर आभार नीलिमा जी

    ReplyDelete
  4. सैनिकों की नवविवाहिताओं का दर्द बखूबी वर्णित किया आपने ।
    बहुत शानदार लेखन ।

    ReplyDelete
  5. सादर आभार आदरणीय

    ReplyDelete
  6. कितने प्यारे शब्दों में दर्द की कहानी रच दी आपने
    बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद नीलम जी

      Delete
  7. जी अवश्य पम्मी जी बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए 🙏

    ReplyDelete
  8. बेहद.हृदयस्पर्शी रचना अनुराधा जी।
    शहीद की विधवा भी तो एक.स्त्री ही होती है न उसका दर्द एक आम स्त्री से कम तो नहीं होगा। शब्दांकन बेहद मार्मिक है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी

      Delete
  9. ये हौसला जीने का कि वो एक शहीद की पत्नी है
    ये सोच कि वो कतई कमजोर नहीं है
    और जिंदगी के मैदान में जीने की एक कड़ी जिद।

    ये शहीद की अर्धांगिनी में ही देखा गया है।
    कविता में मार्मिक तत्व गौण और वीरतत्व प्रधान है।
    सुंदर लेखन।


    मेरे ब्लॉग पर स्वागत रहेगा

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏

      Delete
  10. दिल को छूती रचना!!!

    ReplyDelete
  11. ह्रदयस्पर्शी रचना ।

    ReplyDelete