आज के युग के बच्चे
सभ्यता संस्कार भूल रहे
बड़े बूढों का चरण स्पर्श
हाय हैलो में बदल रहे
सदा चहकते रहते थे
मोबाइल लेपटॉप में जकड़ गए
शरबत शिकंजी पीछे छोड़
कोक पेप्सी का दौर चले
दाल रोटी को छोड़ कर घर में
पिज्जा बर्गर में जुटे पड़े
फटी जीन्स पहन कर घूमें
उसको फैशन बताते है
डिस्को पब की दुनिया
उसको जन्नत बताते है
छोड़ गलियों के खेल
मोबाइल गेम खेल रहे
आधुनिकता का लिबास ओढ़
वास्तविकता को भूल रहे
मंदिरों में हाथ जोड़ना
अब रीत पुरानी लगती है
दिखावे की इस दुनिया में
अपनों की भीड़ बेगानी लगती है
वर्तमान की यह हालत है
फिर भविष्य तो बिगड़ रहा
आज की क्या बात करें
आने वाला कल हाथ से निकल रहा
***अनुराधा चौहान***
आज कल कुछ घरों में इस तरह के बदलाव देखने को मिल रहें हैं जो बेहद चिंता का विषय बन गया है
सही बात। 👌👌मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteआने वाला कल तो सच में हमारे हाथ में नहीं है। बच्चे बिगड़ भी रहे हैं तो भी दोष हमारा ही है, सारे समाज का है। आपने रचना में सच्चाई बयान की है फिर भी इस कड़वे सच को हमें अब सहना ही होगा।
ReplyDeleteजी मीना जी में सहमत हूं आपसे सादर आभार
Deleteबेहतरीन रचना 🙏
ReplyDeleteवर्तमान समय की कड़वी सच्चाई
ReplyDeleteपता नहीं आगे क्या होगा
बहुत सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद लोकेश जी
Deleteसही चित्रण किया आपने आज के संस्कार विहिन होते नोनिहाल का, पर ज्यादा दोषी हम है हमने जो स्वयं के लिये छूट और सहूलियत खूले विचारों की रुपरेखा बनाई बच्चे उससे तीन गुनी लेने की ललक मे हैं और जो सामने दिख रहा है यथा संभव हम सही ना कर पायें तो फिर भुगतें।
ReplyDeleteरचना आपकी प्रवाहता लिये सटीक और यथार्थ है।
और एक चिंतन दे रही है।
साधुवाद
धन्यवाद कुसुम जी बिल्कुल सही कहा आपने
Deleteसचाई बयान करती हुयी रचना है ... सत्य के करीब
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