Saturday, July 14, 2018

भविष्य बिगड़ रहा है


आज के युग के बच्चे
सभ्यता संस्कार भूल रहे
बड़े बूढों का चरण स्पर्श
हाय हैलो में बदल रहे
सदा चहकते रहते थे
मोबाइल लेपटॉप में जकड़ गए
शरबत शिकंजी पीछे छोड़
कोक पेप्सी का दौर चले
दाल रोटी को छोड़ कर घर में
पिज्जा बर्गर में जुटे पड़े
फटी जीन्स पहन कर घूमें
उसको फैशन बताते है
डिस्को पब की दुनिया
उसको जन्नत बताते है
छोड़ गलियों के खेल
मोबाइल गेम खेल रहे
आधुनिकता का लिबास ओढ़
वास्तविकता को भूल रहे
मंदिरों में हाथ जोड़ना
अब रीत पुरानी लगती है
दिखावे की इस दुनिया में
अपनों की भीड़ बेगानी लगती है
वर्तमान की यह हालत है
फिर भविष्य तो बिगड़ रहा
आज की क्या बात करें
आने वाला कल हाथ से निकल रहा
***अनुराधा चौहान***
आज कल कुछ घरों में इस तरह के बदलाव देखने को मिल रहें हैं जो बेहद चिंता का विषय बन गया है 

10 comments:

  1. सही बात। 👌👌मर्मस्पर्शी रचना

    ReplyDelete
  2. आने वाला कल तो सच में हमारे हाथ में नहीं है। बच्चे बिगड़ भी रहे हैं तो भी दोष हमारा ही है, सारे समाज का है। आपने रचना में सच्चाई बयान की है फिर भी इस कड़वे सच को हमें अब सहना ही होगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी मीना जी में सहमत हूं आपसे सादर आभार

      Delete
  3. बेहतरीन रचना 🙏

    ReplyDelete
  4. वर्तमान समय की कड़वी सच्चाई
    पता नहीं आगे क्या होगा
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद लोकेश जी

      Delete
  5. सही चित्रण किया आपने आज के संस्कार विहिन होते नोनिहाल का, पर ज्यादा दोषी हम है हमने जो स्वयं के लिये छूट और सहूलियत खूले विचारों की रुपरेखा बनाई बच्चे उससे तीन गुनी लेने की ललक मे हैं और जो सामने दिख रहा है यथा संभव हम सही ना कर पायें तो फिर भुगतें।
    रचना आपकी प्रवाहता लिये सटीक और यथार्थ है।
    और एक चिंतन दे रही है।
    साधुवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद कुसुम जी बिल्कुल सही कहा आपने

      Delete
  6. सचाई बयान करती हुयी रचना है ... सत्य के करीब

    ReplyDelete