(चित्र गूगल से साभार) |
नारी का जीवन
जैसे नदिया की धारा
उनसे अपेक्षा का
नहीं कोई किनारा
बेटों को सीने से लगाते
उनको किनारा कर देते
बेटी पराया धन होती
यह सीख सदा उनको देते
प्यार सदा उनको मिलता
वह एहसास नहीं मिलता
उस घर को अपना कह सके
वह अधिकार नहीं मिलता
ब्याह कर के वह जब भी
अपने ससुराल जाती हैं
गृहलक्ष्मी बन कर भी
वह सम्मान न पाती हैं
सुबह से उठ कर काम करे
रखे सभी का खूब ख्याल
फिर भी बात बात में मिलता
उनको पराए होने का एहसास
नारी के जीवन की
यह कड़वी सच्चाई है
कितना भी समर्पण कर लें
फिर भी कहलाती पराई हैं
नारी बिना घर स्वर्ग नहीं
यह बात सभी स्वीकार करें
उनसे अपेक्षाएं रखते हो
उन्हें उनके अधिकार भी दें
**अनुराधा चौहान***
धन्यवाद लोकेश जी
ReplyDeleteलाजवाब रचना
ReplyDelete"नारी बिना घर स्वर्ग नहीं
यह बात सभी स्वीकार करें
उनसे अपेक्षाएं रखते हो
उन्हें उनके अधिकार भी दें"
बेहद उम्दा संदेश 👌
सादर आभार आंचल जी
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद मालती जी
Deleteआज के समय में नारी को पराया धर्म कहना ही ग़लत है ... बेटों से ज़्यादा अपने घर का रखती है ध्यान ...
ReplyDeleteसुंदर रचना ...
सादर आभार आदरणीय
ReplyDeleteसुंदर यथार्थ दर्शन करवाती सार्थक रचना ।
ReplyDeleteसब करने को सदा तत्पर नारी
बस थोड़ा सम्मान चाहती अपनो की नजर मे नारी।
अप्रतिम सुंदर।
सादर आभार कुसुम जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशानदार रचना बहुत खूब
ReplyDeleteAfter a long time....a heart throbbing poem
ReplyDeleteआज मैं आपके ब्लॉग पर आया और ब्लोगिंग के माध्यम से आपको पढने का अवसर मिला
ReplyDeleteख़ुशी हुई.
जान कर बहुत खुशी हुई आपको मेरी रचनाएं पसंद आई
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
एक नारी अपना सम्पूर्ण जीवन दूसरों की जिंदगी बनाने में लगा देती है।
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत ही सुंदर है अनुराधा जी।।
धन्यवाद आदरणीय
Delete