जब उजड़ती है कोई बस्ती
तो बस्ती नहीं बसती
इतिहास बन जाती है
दफन हो जातीं हैं
सदा के लिए
मिट जाते निशां उनके
बन जाती हैं वहां इमारतें
बिखर जाते हैं आशियां
जहां बसती थी खुशियां
समेट कर बिखरे सपनों को
चल देते हैं बेघर बेसहारा
आंखों में नमी लिए
इक नई मंजिल की ओर
एक नई आस के साथ
कभी तो होगी कोई भोर
कभी तो होगा जीवन में उजाला
कभी तो कोई बसेरा मिलेगा
जो उनका अपना होगा
फिर बसाते है नई बस्ती
जानते हैं यह सच भी
जब तक गरीबी उनमें बसती
तब तक कोई बस्ती नहीं बसती
रेत के घरोंदें सी उनकी बस्ती
आज बनी तो कल है मिटती
***अनुराधा चौहान***
तो बस्ती नहीं बसती
इतिहास बन जाती है
दफन हो जातीं हैं
सदा के लिए
मिट जाते निशां उनके
बन जाती हैं वहां इमारतें
बिखर जाते हैं आशियां
जहां बसती थी खुशियां
समेट कर बिखरे सपनों को
चल देते हैं बेघर बेसहारा
आंखों में नमी लिए
इक नई मंजिल की ओर
एक नई आस के साथ
कभी तो होगी कोई भोर
कभी तो होगा जीवन में उजाला
कभी तो कोई बसेरा मिलेगा
जो उनका अपना होगा
फिर बसाते है नई बस्ती
जानते हैं यह सच भी
जब तक गरीबी उनमें बसती
तब तक कोई बस्ती नहीं बसती
रेत के घरोंदें सी उनकी बस्ती
आज बनी तो कल है मिटती
***अनुराधा चौहान***
बहुत मार्मिक रचना। सार्थक विषय जिसे बहुत अच्छे से लिखा लेखनी ने।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नीतू जी
Deleteबेहतरीन मार्मिक पर कटु सत्य ....मानो जीवन का सार बताती बस्ती जैसी जिंदगी आज खड़ी कल बिखरी जाती ! ! ! ! ! बेहतरीन अनुराधा जी कहीं गहरी उतर गई सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद इंदिरा जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए 🙏
Deleteबहुत मार्मिक रचना , गहरे भाव ... बधाई अनुराधा जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏🙏
Deleteअंतर को छूती सार्थक रचना।
ReplyDeleteबस बस उजड़ते रहते कच्चे आशियाने
यायावर सी जिंदगी के क्या ठिकाने।।
कटु सत्य....सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
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