भोर सुहानी
रवि उदय हुआ
नई भोर हुई
रवि किरणें जग में
चहुं ओर बिखरी
भर अंबर में लाली
लाई भोर सुहानी
चिड़िया चहकी
डाली डाली
देख अंबर की लाली
कली कली इठलाई
सुन भंवरों की गुंजन
फूल बन मुस्काई
छोड़ शबनमी आवरण
रवि किरणों की छुअन से
शोभित वसुंधरा शरमाई
गालों को छुकर
पवन चली
बोली उठ जाओ
नई भोर हुई
***अनुराधा चौहान***
वाह ...भोर का सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद सखी 🙏
Deleteभोर का अप्रितम शब्दांकन प्रिय अनुराधा जी |
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रेनू जी
Deleteभोर का बहुत सुन्दर वर्णन करती रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
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