Tuesday, July 24, 2018

झूठ जिए सच है मरता

यह कैसा कलयुग का खेला
झूठ जिए सच है मरता
पहन के यह मखमली जामा
खुल कर फिरे तान कर सीना
झूठ की इतनी महिमा न्यारी
महलों में इसकी हिस्सेदारी
जिसने थामा झूठ का दामन
खुशियों भरा उसका घर आंगन
पर सच भी जिद पर अड़ा हुआ है
झूठ के आगे खड़ा हुआ है
सच के दामन में जो लिपटे पड़े हैं
मुश्किल में वे बहुत पड़े हैं
गरीबी उनके गले पड़ी है
खाने की मुश्किल आन पड़ी है
फिर भी उसूलों पर अड़े हुए हैं
झूठ के सामने डटे खड़े हैं
यह लड़ाई तब तक चलेगी
जब तक धरा पर जिंदगी रहेगी
कब तक सच मरता रहेगा
झूठ के आगे झुकता रहेगा
कभी तो होगी झूठ की हार
सच की होगी जय जयकार
***अनुराधा चौहान***

7 comments:

  1. सच कहा आपने ...वाह

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद रेवा जी

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  2. कब तक सच मरता रहेगा
    झूठ के आगे झुकता रहेगा
    कभी तो होगी झूठ की हार
    सच की होगी जय जयकार....
    👍👍👍👍

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  3. कब तक सच मरता रहेगा
    झूठ के आगे झुकता रहेगा
    कभी तो होगी झूठ की हार
    सच की होगी जय जयकार....
    बहुत सुंदर रचना, अनुराधा दी।

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  4. ये कलयुग है झूठ की माया तो होनी है ... पर सच फिर भी सच रहेगा ...
    अच्छी रचना ....

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    1. धन्यवाद आदरणीय दिगंबर जी

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