यह कैसा कलयुग का खेला
झूठ जिए सच है मरता
पहन के यह मखमली जामा
खुल कर फिरे तान कर सीना
झूठ की इतनी महिमा न्यारी
महलों में इसकी हिस्सेदारी
जिसने थामा झूठ का दामन
खुशियों भरा उसका घर आंगन
पर सच भी जिद पर अड़ा हुआ है
झूठ के आगे खड़ा हुआ है
सच के दामन में जो लिपटे पड़े हैं
मुश्किल में वे बहुत पड़े हैं
गरीबी उनके गले पड़ी है
खाने की मुश्किल आन पड़ी है
फिर भी उसूलों पर अड़े हुए हैं
झूठ के सामने डटे खड़े हैं
यह लड़ाई तब तक चलेगी
जब तक धरा पर जिंदगी रहेगी
कब तक सच मरता रहेगा
झूठ के आगे झुकता रहेगा
कभी तो होगी झूठ की हार
सच की होगी जय जयकार
***अनुराधा चौहान***
झूठ जिए सच है मरता
पहन के यह मखमली जामा
खुल कर फिरे तान कर सीना
झूठ की इतनी महिमा न्यारी
महलों में इसकी हिस्सेदारी
जिसने थामा झूठ का दामन
खुशियों भरा उसका घर आंगन
पर सच भी जिद पर अड़ा हुआ है
झूठ के आगे खड़ा हुआ है
सच के दामन में जो लिपटे पड़े हैं
मुश्किल में वे बहुत पड़े हैं
गरीबी उनके गले पड़ी है
खाने की मुश्किल आन पड़ी है
फिर भी उसूलों पर अड़े हुए हैं
झूठ के सामने डटे खड़े हैं
यह लड़ाई तब तक चलेगी
जब तक धरा पर जिंदगी रहेगी
कब तक सच मरता रहेगा
झूठ के आगे झुकता रहेगा
कभी तो होगी झूठ की हार
सच की होगी जय जयकार
***अनुराधा चौहान***
सच कहा आपने ...वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रेवा जी
Deleteकब तक सच मरता रहेगा
ReplyDeleteझूठ के आगे झुकता रहेगा
कभी तो होगी झूठ की हार
सच की होगी जय जयकार....
👍👍👍👍
धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteकब तक सच मरता रहेगा
ReplyDeleteझूठ के आगे झुकता रहेगा
कभी तो होगी झूठ की हार
सच की होगी जय जयकार....
बहुत सुंदर रचना, अनुराधा दी।
ये कलयुग है झूठ की माया तो होनी है ... पर सच फिर भी सच रहेगा ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ....
धन्यवाद आदरणीय दिगंबर जी
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