मन इक
पंछी आवारा
पंछी आवारा
मस्त मगन
उड़ता फिरता
उड़ता फिरता
कभी यहां
कभी वहां
कभी वहां
सपने अलबेले
बुनता
बुनता
कभी महलों में
कभी रिश्तों में
सुकुन के
पल ढूंढ़ता
पल ढूंढ़ता
कभी बेपरवाह
हो फिरता
हो फिरता
मन इक
पंछी आवारा
पंछी आवारा
मस्त मगन
उड़ता फिरता
उड़ता फिरता
कभी आसमां में
तारे गिनता
तारे गिनता
कभी तन्हाइयों में
गोते खाता
गोते खाता
कभी आसमां की
ऊंचाईयों में
ऊंचाईयों में
पंख फैला कर
उड़ता फिरता
उड़ता फिरता
कभी उदास
और हताश
और हताश
अंधेरे में जा छुपता
कभी प्रिय
मिलन की चाह में
खुशी से
झूमने लगता
कभी प्रिय
मिलन की चाह में
खुशी से
झूमने लगता
मन इक
पंछी आवारा
पंछी आवारा
मस्त मगन
उड़ता फिरता
उड़ता फिरता
***अनुराधा चौहान***
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteबहुत सुन्दर 👌👌👌
ReplyDeleteवाह रचना
ReplyDeleteसादर आभार इंदिरा जी
Deleteवाह सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रेवा जी
Deleteआपका आभार आदरणीय
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