Saturday, July 28, 2018

बस एक बार लौट आ

यह तेरे आने की आस है
जो हम आज भी जिंदा हैं
तेरे उस प्यार का एहसास है
जो कभी तू हमसे करता था
जिए जा रहे हैं जिंदगी
कभी तो तुझे
हमारी याद आएगी
कभी तो तेरा प्यार जागेगा
कभी तो तू लौट कर आएगा
क्या तुझे हमारी
याद नहीं आती
क्या तुम्हें एहसास नहीं होता
उस प्यार का उस ममता का
जो तुम्हें हमसे मिला
क्या कभी भूले से भी
तुम्हें हमारा
ख्याल नहीं आता
तुम इतने कठोर तो नहीं थे
क्या कोई पीड़ा नहीं होती
कैसे भूल गए तुम मेरा आंचल
जिसके साए में पले
कैसे भूल गए
पिता के कांधे
जिन पर बैठ कर बड़े हुए
कैसे भूल गए यह आंगन
जहां तुम खेले बड़े हुए
शायद हम गलत थे
हमारे संस्कार गलत थे
इसलिए तुम
हमें छोड़ गए
निसहाय अकेले इस उम्र में
भूल गए अपने जन्मदाता को
बस एक बार लौट आ
तुझे सीने से लगा लें
बस इतनी सी चाहत है
***अनुराधा चौहान***
मेरी रचना में उन बुजुर्गों की व्यथा का वर्णन है जिनके बच्चे उन्हें बुढ़ापे में अकेले छोड़ जाते हैं

4 comments:

  1. एक सार्थक रचना और अप्रतिम भाव। लाजवाब !!!

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  2. बहुत भावपूर्ण रचना. .
    अच्छा लिखा हैं..

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