ख्व़ाब कभी मरते नहीं
दब जाते हैं बोझ तले
कभी जिम्मेदारियों
तो कभी दूसरों के ख्व़ाब तले
बहुत भाग्यशाली होते हैं
जिनकी पूरी होती है ख्वाहिश
अकसर छुप जाते हैं ख्व़ाब
किसी दराज के कोने में
किसी किताब के अंदर
तो किसी के जल जाते हैं
रोटियों की तरह
ढूँढ़ते हैं वजूद अपना
मन के किसी कोने में
जिसका कभी वो हिस्सा थे
जगाते हैं फिर एहसास
एक चाहत जीने की
ख्व़ाबो को पूरा करने की
लम्हा लम्हा बीत रहा वक्त
फिसल रही हाथ से ज़िंदगी
जी ले अपनी जिंदगी
दबे हुए एहसास जगाकर
कर ले पूरे ख्व़ाब अधूरे
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
वाह!!! बहुत खूब.... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी 🙏
Deleteवाहः
ReplyDeleteबहुत उम्दा और खूबसूरत अशआर
धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी
Deleteखरा सत्य उकेरा है आपने अपनी रचना के माध्यम से शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सुप्रिया जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए 🙏
Deleteयथार्थ भान करवाती रचना
ReplyDeleteख्वाब कभी मरते नही।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार राधा जी
Deleteजी अवश्य आपका बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद साझा करने के लिए
ReplyDeleteसच है ख्वाब कभी नहीं मरते , उनके बीज दबे रहते हैं , ये अहसास स्त्रियों को ज्यादा होता है क्योंकि वो अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा परिवार में सबके ख्वाब पूरे करने में लगा देती हैं ... सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏
Deleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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