Friday, August 3, 2018

गरीब हूं साहिब

मैं दूसरों के सपनों को
साकार करती हूंँ
गरीब हूं साहिब
तो क्या हुआ
मैं भी हर रात
सपने बुनती हूंँ
फिर सुबह तोड़ती हूंँ
पत्थरों की तरह
डाल आतीं हूंँ
किसी सड़क पर
उसके निर्माण के लिए
यह सड़क नहीं साहिब
यह गरीब के सपने हैं
जो रात भर संँजोते है
सुबह पूरे करते हैं
अपने बच्चों के लिए
गरीब हूंँ तो साहिब
तो क्या हुआ
मैं भी सपने बुनती हूं
फिर सुबह ढ़ोती हूंँ इन्हें
सिर पर ईंटों की तरह
तब यह दीवारों में
जाकर चुनती है
तब बनता है आपका
सपनों का घर
वह घर नहीं साहिब
सपने हैं गरीब के
जो वह पूरे करते हैं
तब कहीं जाकर
भरते हैं पेट बच्चों का
तब पाते है कपड़े
तन को ढकने के लिए
गरीब हूंँ साहिब
तो क्या हुआ
मैं भी सपने बुनती हूंँ
और निर्माण करती हूंँ
औरों के सपनों का
***अनुराधा चौहान***





9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 05 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी अवश्य आदरणीय आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. मर्मस्पर्शी रचना यथार्थ दर्शन करवाती ।
    अप्रतिम।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी 🙏

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  3. बेहद संवेदनशील रचना..भावों का तरल.प्रवाह हो रहा है अनुराधा जी।

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    1. धन्यवाद श्वेता जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया पाकर मैं धन्य हो गई

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  4. धन्यवाद आदरणीय

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