हंसती मुस्कुराती चंचल सी
मन को भाती मनमोहिनी सी
यह प्रकृति का अनुपम उपहार
बेटियां हैं घर का शृंगार
अपने कोमल निर्मल मन से
करती शोभित दो-दो घर
माँ-बाप के दिल का यह टुकड़ा
सुंदर इनका चाँद सा मुखड़ा
करती शोभित घर पिया का
करती रोशन नाम पिता का
प्रभु की यह अनमोल कृति है
उपहार में जो सबको मिली है
फिर भी इसका कोई मोल न जाने
मिलते सदा ही इसको ताने
टूटती बिखरती उठ खड़ी होती
मुश्किल में भी यह डटी रहती
हर जगह तिरस्कार है पाती
फिर भी सदा रहती मुस्कुराती
कोई न पाए इसको तोड़
बेटियां है पर नहीं कमजोर
माँ काली का है यह वरदान
बेटियां विधाता का अनुपम उपहार
सृष्टि की यह अनमोल कृति
नारी रिश्तों की है जननी
***अनुराधा चौहान***
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-11-2018) को "नारी की कथा-व्यथा" (चर्चा अंक-3169) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत बहुत आभार राधा जी
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteहंसती मुस्कुराती चंचल सी
मन को भाती मनमोहिनी.. .
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत बहुत आभार आदरणीय मेरी रचना को स्थान देने के लिए
ReplyDeleteमन को छूती सुंदर रचना सखी ।
ReplyDeleteबेटियाँ बागों की चिरैया होती है
डाली पर बैठ झुमती दो मीठे बोल बोलती
और फ्रूर बसेरा कहीँ और ।
सही कहा सखी आपने बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत सुंदर कृति अनुरावा जी,मेरे मन के बहुत करीब...वाह्ह्ह👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार श्वेता जी
Deleteवाह!!प्रिय अनुराधा जी ,बहुत खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
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