Friday, December 21, 2018

माँ की मुस्कान

एक रात एक कली खिली
भोर हुई तो फूल बनी
यौवन की दहलीज पर आकर
किसी के घर का नूर बनी
बनी किसी के गले का हार
चेहरे की मुस्कान बनी
भूल गई दर्द वो अपना
सबके दर्द की दवा बनी
पायल,बिछिया,बिंदी,महावर
जीवन का श्रृंँगार बने
वात्सल्य भरा हृदय लेकर
वंश बेल को लगी सींचने
सबकी खुशियांँ चुनते चुनते
अपनी उम्र को भूल गई
छुट गया साथ साथी का
अपने दम पर खड़ी रही
वक़्त बदला,लोग बदले
पर उसकी मुस्कान न बदली
आंँखों में छिपा बहुत कुछ
पर उसकी पहचान न बदली
बालों में चांँदी सी चमक
पायल की कम होती खनक
बुझने लगी मुस्कान उसकी
मुख फेरती संतान उसकी
कल तक जो गोदी में पला था
बेटा आज दूर खड़ा था
आंँखों में छलकने लगे थे आंँसू
जिनको सबसे लगीे छुपाने
बड़े चाव से जो घर था सजाया
उस घर में पसंद नहीं उसका साया
माँ थी अपने जिगर के टुकड़े की
अब उसी की नौकरानी बन गई
फिर भी कोई गिला नहीं
बेटा फिर भी बुरा नहीं
देती रही दिन-रात दुआएंँ
बेटे की बढ़ती रहें खुशियांँ
पर आंँखों पर पट्टी बंधी थी
माँ की तकलीफ़ कहाँ दिखती थी
सबसे बड़ा बोझ थी सिर पर
कब उतरेगा फिक्र यही थी
छोड़ दिया एक दिन बेबस
वृद्धाश्रम में जाकर उसने
रोती रही बेटे को पकड़ कर
पर उसने न देखा पलट कर
कैसा यह कलयुग का प्राणी
जिसने माँ की कदर न जानी
जब तक जरूरत,तब तक मा-ँबाप हैं
चलना सीखा तो वो बेकार हैं
जिस माँ की मुस्कान थी प्यारी
देदी उसी को दर्द की बीमारी
क्यों भूलते यह दुनियांँ गोल है
जो बोओगे उससे मिले दूना मोल है
***अनुराधा चौहान***

18 comments:

  1. भूल गई दर्द वो अपना
    सबके दर्द की दवा बनी
    पायल,बिछिया,बिंदी,महावर
    जीवन का श्रृंगार बने
    वात्सल्य भरा हृदय लेकर
    वंश बेल को लगी सींचने
    सबकी खुशियां चुनते चुनते
    अपनी उम्र को भूल गई.. .बेहतरीन रचना सखी 👌

    ReplyDelete
  2. बहुत मार्मिक हृदयस्पर्शी रचना अनुराधा जी

    ReplyDelete
  3. अत्यंत मार्मिक शब्द चित्र सखी | --
    जिस माँ की मुस्कान थी प्यारी
    देदी उसी को दर्द की बीमारी
    क्यों भूलते यह दुनियां गोल है
    जो बोओगे उससे मिले दूना मोल है
    सच कहा आज जो मुख मोड़ के जाते हैं -
    जहाँ से चले थे एकदिन वहीँ पहुंच जाते हैं |

    माँ की मुस्कान बहुत ही मर्मस्पर्शी है |

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी रेनू आजकल ऐसी घटनाएं बहुत सुनने को मिलती हैं।कल ही फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ी बेटों के होते हुए माँ को भीख मांगना पड़ रही है।
      मन बड़ा विचलित हो जाता है।
      बहुत बहुत आभार रेनू जी

      Delete
    2. सुस्वगतम सखी।

      Delete
  4. जिस माँ की मुस्कान थी प्यारी....देदी उसी को दर्द की बीमारी
    सच अनुराधा जी ,माँओ को कोई और बीमारी नहीं होता सिर्फ बच्चो के दिए दर्द ही बीमारी का रूप लेलेते है ,माँ की दर्द की मार्मिक प्रस्तुति ...सादर स्नेह

    ReplyDelete
  5. माँ की मुस्कान ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

      Delete
  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २४ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार श्वेता जी

      Delete
  7. मर्म स्पर्शी शब्दांकन!

    ReplyDelete
  8. मर्मस्पर्शी काव्य कथा सखी सच आंखें नम हो गईं बहुत सुंदरता से आपने भाव भीना शब्दांकन किया है।
    अप्रतिम काव्य ।

    ReplyDelete
  9. बहुत ही मर्मस्पर्शी...लाजवाब रचना..

    ReplyDelete
  10. दिल को छूती हुयी रचना ...
    जीवन के चक्र को लिखा है ... जो बोता है इंसान वाही उसे काटना भी होता है ... माँ का मान सम्मान जीवन में सबसे ऊपर होना चहिये ...

    ReplyDelete
  11. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी

      Delete