भूखे पेट की माया
कहीं धूप कहीं छाया
दाने-दाने को मोहताज
फिरते लिए हड्डियों का ढांचा
काम मिला तो भरता है पेट
नहीं तो भूखे कटते दिन अनेक
बेरोजगारी बनी बीमारी
जिसने छीनी खुशियां सारी
पर परेशानी का हल निकले कैसे
मंहगाई तो कमर तोड़े ऐसे
जिनके हाथों में इसका हल है
उनको जनता की फ़िक्र किधर है
सब अपनी कुर्सी के भूखे
जनता जिए या मरे भूखे
भूख,भूख, हाय यह भूख
कहीं दो रोटी की चाहत
तो कहीं दौलत की भूख
फिर भी मिटती नहीं
पता नहीं कैसी है यह भूख
***अनुराधा चौहान***
यथार्थ !
ReplyDeleteबहुत खूब
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 22 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदा जी
Deleteकटु सचाई को इंगित करती रचना सखी | सचमुच अन्न की भूख से कहीं बड़ी है भौतिक वैभव; विलास की भूख |यकीन गरीब आदमी की भूख से बढ़कर संसार में कुछ भी दर्दनाक नहीं है |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका रेनू जी
Deleteसार्थक रचना ।
ReplyDeleteहर पीड़ा से भूख बड़ी है।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सखी
Deleteभूख के सच को उजागर करती सच्ची और सटीक रचना
ReplyDeleteबधाई
धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteकहीं दो रोटी की चाहत,तो कहीं दौलत की भूख
ReplyDeleteफिर भी मिटती नहीं,पता नहीं कैसी है यह भूख
सच ,ये भूख कभी नहीं मिटती जीवन सच को दर्शाती आप की ये रचना हृदयस्पर्शी है ,सादर स्नेह
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteफिर भी मिटती नहीं
ReplyDeleteपता नहीं कैसी है यह भूख.... बिल्कुल सत्य वचन। बहुत सुंदर कविता।
बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteअनुराधा जी, गरीबी हटाना मुश्किल काम है इसलिए हमारे नेता अगर गरीब हटा देते हैं तो क्या बुरा करते हैं? जब गरीब ही नहीं रहेंगे तो गरीबी की समस्या का तो अपने-आप हल निकल आएगा. अपने हाकिमों की आलोचना करने के बजाय आप उनकी तारीफ कीजिए तो हो सकता है कि आपको 'पद्म श्री' या 'पद्म भूषण' के साथ 'ज्ञानपीठ' पुरस्कार भी मिल जाए.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी टिप्पणी पर जरूर विचार करूंगी 🙏
Deleteसच को उजागर करती ....... सटीक रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
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