रंग बदलती
दुनियां में
हर चीज
बदलते देखी है
बदलते देखी है
चेहरे पर
मुस्कान लपेटे
इंसान बदलते
देखें हैं
कांँच से है
रिश्ते आज़ के
कब टूट जाएंँ
किसी बात पर
कदम फूंँक-फूंँक
कर रखना
फिर भी दिलों में
कांँटों से चुभना
गिरगिट खुद
शर्मिंदा होता
जब इंसानों को रंग
बदलते देखता
सोचता हम तो
बेकार ही बदनाम है
रंग बदलने में तो
माहिर इंसान है
मुस्कान के पीछे
छुपे चेहरे में
न जाने कितने
राज गहरे हैं
कहीं दर्द छिपा
रखें हैं तो
कहीं बेवफाई
के मुखोटे हैं
***अनुराधा चौहान***
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद दीपशिखा जी
Deleteगिरगिट भी इंसानो को रंग बदलते देख शर्मिंदा है ,बहुत खूब.... अच्छी रचना स्नेह सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteबहुत बहुत आभार पम्मी जी
ReplyDeleteरंग बदलने में तो
ReplyDeleteमाहिर इंसान है
मुस्कान के पीछे
छुपे चेहरे में
न जाने कितने
राज गहरे हैं
कहीं दर्द छिपा
रखें हैं तो
कहीं बेवफाई
के मुखोटे हैं
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनुराधा दी।
बहुत बहुत आभार ज्योती जी
Deleteबहुत सुंदर,गहरी और सार्थक रचना अनुराधा जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत ही सुंदर सखी सच को आइना दिखाती सार्थक रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteसटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब।
बहुत बहुत आभार सखी
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