आंखों में उसके चंचलता
बातों में उसके मोहकता
चलती है जब बल खाकर
लगती जैसे हो मधुशाला
हो स्वर्ग से उतरी हूर कोई
इतनी सुन्दर जैसे हो परी
दिल ममता से भरा हुआ
आंखों में दर्द है कहीं छुपा
तन से कोमल मन से कोमल
चंचल चितवन जैसे कमल नयन
गाल गुलाबी फूलों जैसे
फिर भी चुभती सबको शूलों जैसी
नारी बिना कोई मर्द नहीं
फिर भी दिखता उसका दर्द नहीं
चंचल मन वो सबको दिखाती
अपनी मजबूरी सबसे छुपाती
कुदरत का वो अनमोल नगीना
जिसने की सृष्टि की रचना
सदियों से मन में चाह लिए
उसको भी पूरा मान मिले
औरत है नहीं कोई खिलोना
क्यों उसका सुख-चैन है छीना
देदो उसको भी अधिकार सभी
होंठों पर खिल उठे चंचल हंसी
अपने आत्मसम्मान की खातिर
लड़ती रही और लड़ती रहेगी
चंचल,ज्वाला दोनों रूपों में
नारी है इसलिए अटल खड़ी है
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुंदर भावों वाली सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सखी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत ही सुन्दर सखी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/99.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राकेश कुमार जी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteनारी की शक्ति उसका धैर्य कहीं अधिक है सभी से ...
ReplyDeleteअटल कड़ी रहती है सबके सामने वो ... अच्छी रचना है ...
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर भावों से सजी कविता, अनुराधा दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ज्योती जी
Deleteबहुत खूब
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