कोई जब ज़िंदगी में
खास होता है
उसका वक़्त पर
एहसास नहीं होता
जब कहीं वो आंँखों से
ओझल हो जाता है
तब अपनी गलती का
एहसास होता है
ऐसे ही माता-पिता की
खास होता है
उसका वक़्त पर
एहसास नहीं होता
जब कहीं वो आंँखों से
ओझल हो जाता है
तब अपनी गलती का
एहसास होता है
ऐसे ही माता-पिता की
अहमियत
तब तक समझ नहीं आती
जब तक वो हमारी
जरूरत पूरी करते रहते हैं
जब वो लाचार हो जातें हैं
या कभी अचानक
सिर से हट जाता
पिता का हाथ
आश्वासन देने तो
बहुत लोग हैं आते
पर साथ देने वाला
कोई हाथ नहीं आता
तब होता है पिता की
अहमियत का एहसास
समय रहते करलो
हर रिश्ते की कदर
ज़िंदगी मौका देती है
तो धोखा भी दे जाती है
***अनुराधा चौहान***
तब तक समझ नहीं आती
जब तक वो हमारी
जरूरत पूरी करते रहते हैं
जब वो लाचार हो जातें हैं
या कभी अचानक
सिर से हट जाता
पिता का हाथ
आश्वासन देने तो
बहुत लोग हैं आते
पर साथ देने वाला
कोई हाथ नहीं आता
तब होता है पिता की
अहमियत का एहसास
समय रहते करलो
हर रिश्ते की कदर
ज़िंदगी मौका देती है
तो धोखा भी दे जाती है
***अनुराधा चौहान***
सही कहा आपने,माँ बाप के जाने के बाद ही उनकी अहमियत समझ आती है ,प्रेरणादायक रचना ,आप के ब्लॉग पर आ कर अत्यंत प्रसन्न्ता हुई .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका स्वागत है
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अटूट बंधन आपका
Deleteबहुत सही प्रिय अनुराधा जी |माता पिता का संसार में कोई विकल्प हरगिज नहीं | सस्नेह --
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रेनू जी
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