अनजाना सा सफर था
कुछ लम्हों का यह मिलन था
अनजानी राह में
मंजिल की चाह में
अजनबी एक-दूजे से
अनजानी डगर थी
चला सिलसिला बातों
ख्यालों से ख्याल मिले
नयनों से नयन मिले
अहसास कुछ छलक पड़े
अधरो पर मौन लिए
कुछ क़दम और साथ चले
मन में छिपे हुए भाव
नयनों से झलक उठे
हृदय की धड़कन में
गीत कोई बजने लगा
अनजाना सफर
अब पहचाना लगने लगा
ख्यालों में तुम संग
ख्वाब कोई बुन गया
मुँद गई पलकें सहसा
तस्वीर तेरी झलक गई
सांँसों की डोर
तुम संग बंध गई
प्रीत का अहसास
मन को लुभाने लगा
साथ हमसफ़र का
मन को रास आने लगा
जाने कब मैं बन गई
तेरे जीवन की रागिनी
बातें कब तेरी
मन को रास आने लगी
पतझड़ के मौसम में
बहार खिलखिलाने लगी
अधरो पर थिरक उठे
बोल किसी गीत के
जीवन का अर्थ नही
अब बिना मेरे मीत के
साथ कुछ लम्हों का
मेरे दिल में समा गया
साथी जन्मों के साथ
मैंने है पा लिया
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteधन्यवाद निधि जी
Deleteअनुराग से ओत प्रोत सुंदर काव्य चित्र सखी | आभार और शुभकामनायें |
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी
DeleteApne ehsaso ko boht hi sunder tarike se kavita ka rup diya hai apne...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
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