सीधी सच्ची सरल भाषा
लिखती हूँ मन की अभिलाषा
नित पनपते मेरे मन में
नव अंकुर अहसासों के
आशाओं की बेल पनपती
मन के कोमल भावों से
कोरे कागज पर लिखकर
करती भावों को साकार
रचनाओं के रूप से निखरे
शब्दों का यह सुंदर संसार
लय न जानूं ताल न जानूं
भावनाओं में बहना जानूं
कविता लिखूंँ या गीत लिखूंँ
भावों से अपनी प्रीत लिखूंँ
नित पनपें सबके मन में
नव गीत सुंदर भावों के
मोती बनकर चमकें सदा
शब्द सुंदर अहसासों के
चाँद की चाँदनी बनकर
मधुमास का प्यार बनकर
सावन की रिमझिम फुहारों-सी
लिखूँ मैं विरह की वेदना
सीधी सच्ची सरल भाषा
लिखती हूँ मन की अभिलाषा
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर सखी
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
Deleteवाह वाह बहुत खूबसूरत मन के भाव बह प्रेम बन बह रहे।
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
Deleteबहुत ही सुंदर.....
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteवाह!!सखी, बहुत खूब !!
ReplyDeleteलिखती हूँ मन की अभिलाषा ...वाह क्या बात है!!
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Delete