Wednesday, April 10, 2019

एक बेचारा

एक गरीब बेचारा
घर सेे निकला था
रोजी-रोटी तलाशने
जेब में संभाल कर रखे थे
माँ के आँसू,
पिता का आशीष
पत्नी के अरमान
बच्चों की ख्वाहिशें
लिए चंद रुपए
खाई दरबदर की ठोकरें
सच्चाई की दौलत जेब में लिए
मेहनत कर पैसे कमाए
हर काम के लिए
करता औरों की जेब गरम
गरीब के पैसे ख़ाकर
भ्रष्टाचारियों को न आए शरम
सच्चाई हारने लगी
झूठ पांव पसारने लगा
गांव से आया सच्चा इंसान
धीरे-धीरे भ्रष्टाचारी बनने लगा
दोष उसका नहीं 
दोष रसूखदारों का है
पैसे वालों को सारी सुविधाएं
गरीब की कौन सुनता है
धूप में बदन जलाकर
मेहनत कर पसीना बहाते
फिर भी जरुरत पूरी न हो पाए
ना ही बच्चों को पढ़ा पाते
तंगहाली में कब फट जाती जेब
गिरकर मिट्टी के मिल जाते
पत्नी के अरमान
बच्चों की ख्वाहिशें
माँ के आँसू, पिता का आशीर्वाद
करने सबकी जरुरतें पूरी
करने लगा सबकी जी हुजूरी
***अनुराधा चौहान***

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर सखी
    सादर

    ReplyDelete
  2. सच्चाई की दौलत जेब में लिए
    जेब में संभाल रखे थे मा के आंसू ,पिता का आशीष
    बेहतरीन प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार ऋतु जी

      Delete
  3. बिल्कुल सच कहा आपने

    सच्चाई हारने लगी
    झूठ पांव पसारने लगा
    गांव से आया सच्चा इंसान
    धीरे-धीरे भ्रष्टाचारी बनने लगा

    बहुत सुंदर सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद रवीन्द्र जी

      Delete
  4. हृदयस्पर्शी सृजन अनुराधा जी ।

    ReplyDelete