Wednesday, April 24, 2019

धूप-छांव ज़िंदगी की

बड़ी विकट है धूप-छांव ज़िंदगी की
अज़ब यह ज़िंदगी गज़ब है तमाशा

वक़्त के साथ-साथ हर इंसान बदलता
कोई झूठ से तो कोई धोखे से मरता

चाहतें हैं बड़ी-बड़ी ज़िंदगी है छोटी
सूरतें हैं भोली पर नीयत हैं खोटी

हरपल बदलते यहाँ इंसान के चेहरे
हर चेहरे के पीछे छुपे राज बड़े गहरे

सच्चाई की है यहाँ उमर बड़ी छोटी
झूठ के हाथों से वह बेमौत मरती

चॉकलेट से सस्ती है बेटियों की कीमत
दिखती नहीं है उनकी मासूम-सी सूरत

वासना में अँधे यह शैतानी चेहरे
मासूम चीखों पर लगते हैं ठहाके

टूटती हैं कलियाँ बिखरते हैं सपने
कुछ दूसरे हैं तो कुछ होते हैं अपने

यह शैतानी घाव ज़िंदगी कब-तक सहेगी
चीखों से इनकी इंसानियत कब-तक मरेगी

ज़िंदगी पर लग रहे दाग़ बड़े गहरे
मौत से भी बदतर हालत अब ठहरे

कब तक कलम यह दर्द लिखती रहेगी
इंसानियत बार-बार शर्मिंदगी सहेगी

संभाल लो अपने संस्कारों की पूँजी
तभी यह ज़िंदगी ज़िंदगी बन खिलेगी
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. संभाल लो अपने संस्कारों की पूँजी
    तभी यह ज़िंदगी ज़िंदगी बन खिलेगी.....,
    हृदयस्पर्शी सृजन...,संस्कारों को सहेजने और अपनाने का सुझाव...,सही मार्गदर्शन ।

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  2. Wah बेहतरीन प्रस्तुति

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  3. कलम में यह दर्द ना सिमट पायेगा।
    मानव बन समझे तो ही सभझ आयेगा ।
    हृदय स्पर्शी रचना सखी ।

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  4. संभाल लो अपने संस्कारों की पूँजी
    तभी यह ज़िंदगी ज़िंदगी बन खिलेगी
    बिलकुल सही ,बहुत खूब......

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