कभी हारते कभी जीतते
देखें जीवन के रंग अनेक
जन्म लेता है मानव
जीवन की पहली पारी में
असहाय सा पड़ा
कभी रोकर कभी हँसकर
अपने भावों को व्यक्त करता
खिलौने की तरह
कभी इस गोद कभी उस गोद
प्यार के साए में बढ़ता
थोड़ा बड़ा होते ही
दूसरी पारी शुरू होते ही
जुड़ने लगती माँ-बाप की इच्छाएँ
कंधों पर बस्ते का बोझ
बचपन कहीं गुम होने लगता
प्रथम आने की सबको आस रहती
तीसरी पारी में
मंज़िल की तलाशते
सपनों को पूरा करने
निकल पड़ते घर से दूर
तकलीफों को सहकर सफल होते
घर बसाकर जीवन की नई शुरुआत करते
चौथी पारी में
अपने सपने तो कहीं दफ़न हो जाते
बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करने में
माता-पिता को खुश करने में
रिश्तों को टूटते हुए देख
खुद को हारता महसूस करते
अंतिम पारी में
एक बार फिर असहाय से पड़े
कभी रोकर कभी हँसकर
अपने भावों को व्यक्त करते
कभी प्यार कभी तिरस्कार सहते
एक बोझ के जैसे
जीवन को लगते हारने
ज़िंदगी के खेल निराले होते हैं
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
अनुराधा दी,जीवन यात्रा का बहुत ही खूबसूरत वर्णन किया हैं आपने।
ReplyDeleteसहृदय आभार ज्योती बहन
Deleteजीवन चक्र का बहुत खूबसूरत वर्णन 👌👌
ReplyDeleteसहृदय आभार सुधा जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसहृदय आभार भारती जी
Deleteहार्दिक आभार अमित जी
ReplyDeleteजीवन के सभी पड़ावों का बखूबी चित्रण सखी अप्रतिम रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteबेहतरीन रचना प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार प्रिय सखी
Deleteबहुत सुंदर शब्दांकन 👌👌👍👏👏👏😊
ReplyDeleteजी आभार
Delete