Friday, May 3, 2019

फानी की तबाही (पूरी निष्ठा से)


बहुत कोशिश की इंसानों ने
बचा ले तबाही 
प्रकृति के कहर से
फानी आया पूरी निष्ठा से
मचाकर तबाही 
अपना रौद्र रूप दिखाया
तिनके की तरह उड़ते
पेड़,घर,छत और दीवारें
हम कितने भी महल बना लें
बस यहीं हम प्रकृति के क्रौध से हारे
मत छेड़िए प्रकृति का संतुलन
देखिए एक बार फ़िर से
उसके क्रोध की झलक 
बचालो प्रकृति की हरियाली
वरना मिट जाओगे पल भर में
यही असंतुलन प्रकृति का
बन रहा प्रलय का कारण
बदलते रूप मौसम के
कभी भूकंप बनकर
कभी आफ़त बनकर
लीलते ज़िंदगियों को पल भर में
फ़िर भी लगे हुए हम समय
पूरी निष्ठा से तोड़ते पहाड़
पाट रहे नदी के तट
मलीन करते नदियों को
फेंक कर कूड़ा-करकट
हमारी गंदगी का भार लेकर
बहती जाए सागर तट तक
झेल मलीनता सागर भी
मचा रहा हाहाकार
प्रकृति देती फ़िर भी जीवनदान
पर हम जानकर भी नहीं रहे मान
तब क्रौध में आकर 
दिखाती प्रलय की एक झलक
मानव कर रहा खुद प्रकृति का अंत
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

16 comments:

  1. केला तबहिं न चेतिया, जब ढिंग लागी बेर,
    अब चेते ते का भया, काँटा लीन्हें घेर !

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    1. सही कहा आपने 👌 धन्यवाद आदरणीय

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  2. वाह!!सखी ,बहुत खूब ,लिखा आपने । सही है प्रकृति के कहर से बचना मुश्किल होता है ,समय रहते चेतना जरूरी है ,जिससे प्रकृति का संतुलन बना रहे ।

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  3. प्रकृति देती फ़िर भी जीवनदान
    पर हम जानकर भी नहीं रहे मान
    तब क्रौध में आकर
    दिखाती प्रलय की एक झलक
    मानव कर रहा खुद प्रकृति का अंत
    बहुत सटीक सार्थक एवं समसामयिक चिन्तनपरक रचना...

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  4. बचालो प्रकृति की हरियाली
    वरना मिट जाओगे पल भर में
    बिलकुल सही कहा आपने ,अब नहीं संभलेगे तो कब,बहुत सुंदर रचना.....,सादर नमस्कार

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  5. हार्दिक आभार अनिता जी

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  6. प्रकृति के सत्य को उकेरती रचना

    बहुत सुंदर

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  7. बेहतरीन रचना। हालांकि तूफान विनाश की निष्ठा लिए आता है किंतु मानव की नवनिर्माण की निष्ठा उससे हार नहीं मानती। कविवर्य हरिवंश राय बच्चन जी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं -
    क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में उषा है मुसकराती,
    घोर गर्जनमय गगन के कंठ में खग पंक्ति गाती;
    एक चिड़िया चोंच में तिनका लिए जो जा रही है,
    वह सहज में ही पवन उनचास को नीचा दिखाती!
    नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख
    प्रलय की निस्तब्धता से सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
    नीड़ का निर्माण फिर-फिर,नेह का आह्वान फिर-फिर!

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    1. जी बहुत सुंदर पंक्तियां 👌 सहृदय आभार मीना जी

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  8. चेतावनी और भयावहता लिये सामायिक चिंतन देती रचना।
    अप्रतिम।

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