Tuesday, June 11, 2019

इंसानियत को भूलकर

ढह गया अरमानों का घर
अब फड़फड़ाने से क्या फ़ायदा
घर के चिरागों ने आग लगाई
मिट गई जो इज्जत कमाई
हाल,चाल हाव,भाव
अगर समय से परखते
सही ग़लत की कुछ सीख दे लेते
बेटों के मोह में अँधी थी आँखें
देखते तो भी क्या सीख देते
सीख तो घर से ही सीखे
घर के पुरुषों ने घर की
स्त्री की नहीं की कदर
इंसानियत को ताक पर रखकर
हरदम उनका उत्पीड़न किया
बाहर तिरछी नज़र कर व्यंग्य कसे
ढहना ही था उस घर को एक दिन 
संस्कार बिना खोखली थी उसकी नींव
सत्कर्म से भटके हुए थे लोग
इंसानियत को भूलकर
दुष्कर्म का मार्ग पकड़कर
करने लगे ज़िंदगियाँ तबाह
ना किसी की माँ का दर्द समझा 
न किसी की बहन, बेटी की पीड़ा
करते रहे माँ की कोख कलंकित
पुरुष होने का दंभ भरते रहे
यह मानसिक रोगियों को 
डर-भय नहीं किसी का नशे में चूर
इंसानियत के वेश में हैवानियत के दूत
सरकार हमारी न जाने क्यों बैठी है चुप
होती रहेंगी यूँ ही ज़िंदगियाँ बरबाद
हम लोग बेबस‌ होकर यह सब देखते रहेंगे
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

15 comments:

  1. बहुत ही हृदयस्पर्शी ,सखी !!

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  2. सरकार की काहिली को ही कब तक हम कोसते रहेंगे. हमको दरिन्दगी को मिटाने के लिए सबसे पहले खुद कमर कसनी पड़ेगी. हमको दरिंदों को खोज कर सिर्फ़ उनको समाज से बहिष्कृत नहीं करना होगा, बल्कि उनके सभी हमदर्दों और उनके सभी शुभचिंतकों को भी समाज से बाहर का रास्ता दिखाना होगा.

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    1. सही कहा आपने आभार आदरणीय

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  3. दण्ड देने में देरी न हो,तथा सरकार को कोसने से अच्छा
    अपने बच्चों ऐसी गल्ती के लिए मा बाप आगे बढ़ कर स्वयम सजा दे।

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    1. माँ-बाप को तो आगे बढ़कर दण्ड देना ही चाहिए पर सरकार को भी दुष्कर्मी को दण्ड देने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाने चाहिए ताकि कोई भी ऐसी घटनाएं को अंजाम देने से पहले एक बार उस दण्ड के बारे में सोच कर काँप उठे।.. बहुत बहुत धन्यवाद दी

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  4. दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, अनुराधा दी।

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    1. धन्यवाद ज्योती बहन

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  5. बेहतरीन रचना सखी ,कोई मदद को आगे नहीं आएगा ,हमे खुद की और अपनी बच्चियों की सुरक्षा स्वयं करनी होगी,इंसान के रूप में छिपे भेड़ियों की हर पल परख रखनी होगी ,हर पल सतर्क रहना होगा ,कहते हैं न कि -सतर्कता गयी दुर्घटना हुई। और इन भेड़ियों को सामाजिक रूप से वहिष्कृत करना होगा।

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  6. आपने सही लिखा ... घर के अन्दर बेटों को सही शिक्षा जरूरी है ...
    बेटी का अनादर घर में ही नहीं सहना चाहिए ...
    बहुत जलाब रचना है ...

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १७ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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