रोगों से जब घिरे
तब आँखें खुली और आया याद
यह बीमारी नहीं
यह तो सिगरेट की है सौगात
हीरोगिरी के चक्कर में
बनाते रहे धुंए के छल्ले
लगा मौत का रोग तो
मौत की हो गई बल्ले-बल्ले
धुंए की गिरफ्त में
जकड़कर रह गए
सिगरेट हाथों में पकड़कर रह गए
बड़े बुजुर्गो की सुनी नहीं
जब-तक बीमारी बनी नहीं
रहे तब-तक उड़ाते धुआँ
दांव पर लगाकर
खेलते रहे ज़िंदगी का जुआ
मौत के कगार पर
ज़िंदगी को हारकर
थके हुए खड़े हो क्यों
शक्ल यूँ उतारकर
यह तोहफा मिला है सिगरेट का
प्यार से स्वीकार लो
सच्चाई समझ में आई हो
ज़िंदगी से निकाल बाहर करो
सिगरेट के कश लगाते रहे
हो जाओगे खुद धुआँ
सिगरेट रहेगी जीती फिर भी
तुम हो जाओगे फना
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
ज्ञानवर्द्धक जानकारी से भरपुर, बहुत ही सुन्दर सृजन प्रिय दी जी
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार सखी
Deleteसार्थक सृजन आज के अभिशाप पर गहन चिंतन।
ReplyDeleteनवर्द्धक जानकारी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteसहृदय आभार ऋतु जी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२९ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteसिगरेट और स्वास्थ्य पर बहुत ही ज्ञानवर्धक रचना...
ReplyDeleteवाह!!!