नव पल्लव खिलते शाखों पे
पुरवाई डोल गई,
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।
मन के भावों को मैं लिखती
शब्दों को हूँ बुनती।
अबीर गुलाल के रंग चढ़ा
सपने को में गुनती।
लिख डाली कविताएं कितनी
कलम राज खोल गई।
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।
नव पल्लव खिलते शाखों पे
पुरवाई डोल गई।
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।
मधुवन फूला सुगंध फैली
महका फागुन सारा।
फागुन में भींगे तन मन से
मिटा बैर भी सारा।
भीगी भीगी हवा बसंती
अमराई डोल गई।
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।
नव पल्लव खिलते शाखों पे
पुरवाई डोल गई।
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
नव पल्लव खिलते शाखों पे,
ReplyDeleteपुरवाई डोल गई,
लहराकर आई कानों में,
हौले से बोल गई।
वाह !! अनुपम सृजन सखी 👌👌
मधुवन फूला सुगंध फैली,
ReplyDeleteमहका फागुन सारा।
फागुन में भींगे तन मन से,
मिटा बैर भी सारा।
तन को सहलाती चली पवन,
कई सपने बुन गई।
वाह !! बहुत खूब ,बेहतरीन सृजन सखी ,सादर नमन
हार्दिक आभार सखी
Deleteवाह सुंदर पुरवाई सखी मन मोह लिया।
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी 🌹
Deleteपुरवाई डोल गई
ReplyDeleteहौले से कानों में बोल गई
सुन्दर प्रस्तुति
हार्दिक आभार ऋतु जी
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सरस अप्रतिम सृजन।
हार्दिक आभार सखी
Deleteवाह !! बहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteमन के तारों को छेड़ता सा सुन्दर सृजन 👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏
ReplyDeleteप्रतीकों के माध्यम से अपनी बात को कहना पढ़ने में भी अच्छा लगता है 👌👌👌👌 बहुत सुंदर प्रयास 👌👌👌👌 बधाई💐💐💐💐
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह..... लाज़वाब
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