Monday, February 24, 2020

पुरवाई डोल गई

नव पल्लव खिलते शाखों पे
पुरवाई डोल गई,
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।

मन के भावों को मैं लिखती
शब्दों को हूँ बुनती।
अबीर गुलाल के रंग चढ़ा
सपने को में गुनती।
लिख डाली कविताएं कितनी
कलम राज खोल गई।
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।

नव पल्लव खिलते शाखों पे
पुरवाई डोल गई।
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।

मधुवन फूला सुगंध फैली
महका फागुन सारा।
फागुन में भींगे तन मन से
मिटा बैर भी सारा।
भीगी भीगी हवा बसंती  
अमराई डोल गई।
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।

नव पल्लव खिलते शाखों पे
पुरवाई डोल गई।
लहराकर आई कानों में
हौले से बोल गई।‌
***अनुराधा चौहान*** 
चित्र गूगल से साभार

15 comments:

  1. नव पल्लव खिलते शाखों पे,
    पुरवाई डोल गई,
    लहराकर आई कानों में,
    हौले से बोल गई।
    वाह !! अनुपम सृजन सखी 👌👌

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  2. मधुवन फूला सुगंध फैली,
    महका फागुन सारा।
    फागुन में भींगे तन मन से,
    मिटा बैर भी सारा।
    तन को सहलाती चली पवन,
    कई सपने बुन गई।

    वाह !! बहुत खूब ,बेहतरीन सृजन सखी ,सादर नमन

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  3. वाह सुंदर पुरवाई सखी मन मोह लिया।

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  4. पुरवाई डोल गई
    हौले से कानों में बोल गई
    सुन्दर प्रस्तुति

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    1. हार्दिक आभार ऋतु जी

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  5. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सरस अप्रतिम सृजन।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  7. मन के तारों को छेड़ता सा सुन्दर सृजन 👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏

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  8. प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात को कहना पढ़ने में भी अच्छा लगता है 👌👌👌👌 बहुत सुंदर प्रयास 👌👌👌👌 बधाई💐💐💐💐

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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