खिले सरसों खिले टेसू
बहारें मुस्कुराएंगी।
संदेश सुख भरे लेकर
हवाएं खिलखिलाएंगी।
हँसे जगती खिले सबके
बसंती रंग जीवन में।
कुहासे की हटा चादर
बसंत उतरे आँगन में।
खिले हँसके कली कोमल।
लताएं गीत गाएंगी।
खिले सरसों खिले टेसू....
सुनो ऋतुराज जब आए
रंग फागुन संग लाए।
मिटाने रात अब श्यामल
आशा दीप जगमगाए।
नए पल्लव नयी कलियाँ
डाल संग लहराएंगी।
खिले सरसों खिले टेसू....
खिलेंगे मन सभी के फिर
मिटेगी काल की छाया।
मनाएंगे गले मिलकर
रंग त्योहार फिर आया।
जिए जीवन सभी सुख से
खुशी भी गुनगुनाएंगी।
खिले सरसों खिले टेसू....
©® अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2015...लाख पर्दों में छिपा हो हीरा चमक खो नहीं सकता...) पर गुरुवार 21 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteसुन्दर गीत
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया दी
Deleteवाह!
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
सादर।
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteवाह!सखी ,सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteभावपूर्ण सुन्दर गीत ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Delete