मत होने दो
शोषण किसी का
मत होने दो भ्रष्टाचार
मानवता की बलि चढ़ाते
यह मानवीय अत्याचार
जगह जगह पे हिंसा होती
निर्बल मरता भूखा
धनवानों पर धन की बारिश
निर्धन के घर सूखा
जगह-जगह पर
झगड़े लफड़े
जगह-जगह उत्पाद मचा
मानव ने मानव के लिए
यह कैसा भ्रमजाल रचा
भूख मिटे जन-जन के उदर की
यह सोच कृषक अन्न बोते
सर्दी गर्मी बारिश में भी
जीवन के सुख खोते
आज उन्हीं की बदहाली को
देख ईश्वर रोता
मतलब की सब रोटी सेंके
कोई साथ न देता
शोर-शराबे भाग-दौड़ में
जीवन बीता जाए
मानवता मानव के भय से
छुपती मुँह छुपाए
©® अनुराधा चौहान'सुधी' स्वरचित
चित्र गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 21 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteअत्यंत प्रभावशाली लेखन एक उधघोष के साथ।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार सखी
Deleteप्रभावशाली निर्भीक लेखन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
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