Thursday, February 10, 2022

भाव की बिखरी कड़ी


शब्द के जाले उलझकर
भाव की बिखरी कड़ी।
लेखनी फिर मूक होकर
बीनती बिखरी लड़ी।

कौन कोने जा छुपे हैं
वर्ण सारे रूठकर।
बुन रही हूँ बैठ माला
पुष्प सम फिर गूँथकर।
टूटता हर बार धागा
भावना की ले झड़ी।
शब्द के जाले...

लेखनी की नींद गहरी
आज थककर सो रही।
गीत आहत से पड़े सब
प्रीत सपने बो रही।
भाव ने क्रंदन मचाया
खिन्न कविता रो पड़ी।
शब्द के जाले...

मौन मन में मूक दर्शक
आज रस सारे बने।
रंग भी बेरंग होकर
बात पर अपनी तने।
भावनाएं सोचती फिर
राग छलके किस घड़ी।
शब्द के जाले...
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

14 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. जी हार्दिक आभार श्वेता जी ‌‌।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (११ -०२ -२०२२ ) को
    'मन है बहुत उदास'(चर्चा अंक-४३३७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. जी हार्दिक आभार सखी।

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  3. कौन कोने जा छुपे हैं
    वर्ण सारे रूठकर।
    बुन रही हूँ बैठ माला
    पुष्प सम फिर गूँथकर।
    टूटता हर बार धागा
    भावना की ले झड़ी।
    शब्द के जाले...
    भावनाओं से ओतप्रोत अत्यंत मार्मिक व हृदयस्पर्शी

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    1. हार्दिक आभार मनीषा जी।

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  4. आपके अगर वर्ण रूठ जाएँगे तो हम जैसों का क्या होगा । बेहतरीन माला पिरोई है ।
    भावपूर्ण रचना ।

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  5. लेखनी की नींद गहरी
    आज थककर सो रही।
    गीत आहत से पड़े सब
    प्रीत सपने बो रही।
    भाव ने क्रंदन मचाया
    खिन्न कविता रो पड़ी।
    वाह!! लाजवाब! भाव और छंद विधान, दोनों। बधाई और आभार!!!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  6. उत्कृष्ट सृजन।

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    1. हार्दिक आभार अमृता जी।

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  7. "हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें, हम दर्द के सुर में गाते हैं"
    तलत महमूद साहब का गाया वह गीत याद आ गया.
    कुछ ऐसी ही मनःस्थिति है आजकल. आपने जैसे नब्ज़ पर हाथ रख दिया.
    मधुर रचना.

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  8. "कौन कोने जा छुपे हैं
    वर्ण सारे रूठकर।
    बुन रही हूँ बैठ माला
    पुष्प सम फिर गूँथकर।
    टूटता हर बार धागा
    भावना की ले झड़ी।
    शब्द के जाले..."

    वाह बहुत खूब !!

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  9. वाह अप्रतिम सृजन

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