Thursday, June 21, 2018

यादें अतीत की

 
    तन्हाई में जब कभी मैं
     अतीत को याद करती हूं
      स्मृतियां बालपन की
      मन पर छाने लगती हैं
      मां बाप के घर बिताए
      जो लम्हे उन्हें याद कर
      नमी आंखों की पोंछती हूं
      तन्हाई में जब भी मैं
      अतीत को याद करती हूं
      स्मृतियां भाई-बहनों की
      मन पर छाने लगती हैं
      मीठी तकरार रुठना मनाना
      उन साथ खुबसूरत लम्हों की याद
      मन में एक तड़प सी पैदा करते हैं
      तन्हाई में जब भी मैं
      अतीत को याद करती हूं
     स्मृतियां उन रिश्तों की
     जो असमय साथ छोड़ गए
     मन को तड़पाने लगती हैं
     उनके साथ बीता हुआ
     बचपन का हर लम्हा याद कर
     नमी आंखों की पोंछती हूं
     तन्हाई में जब भी मैं
     अतीत को याद करती हूं
     वैसे तो रिश्तों से घिरीं हूं
     उन में ही मेरी जान बसी है
    फिर भी खाली-खाली लगता
    मां बाप बिना मेरा जीवन
        ***अनुराधा चौहान***

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर...

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  2. बेहतरीन...
    नियम है ये
    अजीब दस्तूर है ज़माने का,
    अच्छी यादें पेनड्राइव में
    और
    बुरी यादें दिल में रखते है!!!!
    सादर

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    1. सादर आभार यशोदा जी

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