तन्हाई में जब कभी मैं
अतीत को याद करती हूं
स्मृतियां बालपन की
मन पर छाने लगती हैं
मां बाप के घर बिताए
जो लम्हे उन्हें याद कर
नमी आंखों की पोंछती हूं
तन्हाई में जब भी मैं
अतीत को याद करती हूं
स्मृतियां भाई-बहनों की
मन पर छाने लगती हैं
मीठी तकरार रुठना मनाना
उन साथ खुबसूरत लम्हों की याद
मन में एक तड़प सी पैदा करते हैं
तन्हाई में जब भी मैं
अतीत को याद करती हूं
स्मृतियां उन रिश्तों की
जो असमय साथ छोड़ गए
मन को तड़पाने लगती हैं
उनके साथ बीता हुआ
बचपन का हर लम्हा याद कर
नमी आंखों की पोंछती हूं
तन्हाई में जब भी मैं
अतीत को याद करती हूं
वैसे तो रिश्तों से घिरीं हूं
उन में ही मेरी जान बसी है
फिर भी खाली-खाली लगता
मां बाप बिना मेरा जीवन
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeleteनियम है ये
अजीब दस्तूर है ज़माने का,
अच्छी यादें पेनड्राइव में
और
बुरी यादें दिल में रखते है!!!!
सादर
सादर आभार यशोदा जी
Deleteसादर आभार
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