Sunday, June 24, 2018

बूढ़ी आंखें


(चित्र गूगल से संगृहीत)
बूढ़ी आँखों में आँसू लिए
झुर्रियों से भरा चेहरा
मन के कोने में दबी आशा
पगडंडियों को निहारती
हर आहट बैचेन करती
काट रही है दिन और रैन
शायद अब आए बच्चे मेरे
राह देखते व्याकुल नयन
चारपाई पर बैठकर
हरपल यही सोचती
सूनी आँखें गलियों में
बच्चों का बचपन खोजती
बीत रहे साल दर साल
बड़े जतन से था पाला
पूरी की थी हर ख्वाहिश
बुढ़ापे का बनेंगे सहारा
सोचकर भेजा था परदेश
वो घर से बाहर क्या निकले
बाहर की दुनिया में खो गए
अपनी गृहस्थी बसा कर वो
मां-बाप की दुनिया भूल गए
अगर वो वापस न आए तो
सोचकर मन घबरा जाए
बूढ़ी आँखों से छलक कर
आँसू गालों पर आ जाएं
  ***अनुराधा चौहान***

18 comments:

  1. अपने जान दूर जाते हैं तो आँखें छलक उठती हैं ...
    बहुत भावपूर्ण रचना ...

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  2. अच्छी रचना, आज का यथार्थ है.

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  3. धन्यवाद आप सभी का

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  4. कल आपकी ये बेहतरीन रचना विविधा पर साझा की जाएगी
    https://vividha4.blogspot.com/
    सादर

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    1. जी धन्यवाद यशोदा जी

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  5. भावपूर्ण रचना

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  6. सादर आभार आपका

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  7. निशब्द... :) just want to say hats of to you mam.....
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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  8. बहुत ही मार्मिक रचना है प्रिय अनुराधा जी | बुढापे के असीम अनकहे संताप को समेटे शब्द शब्द वेदना का शोर है |--

    सालों देखी राह आंखों ने
    ना लौट के आये जाने वाले
    जाने कहाँ बसाई बस्ती ?
    तोड निकल गये मन के शिवाले
    नैनो से रिमझिम बरसात हुई
    जाने सुबह हुई कब रात हुई
    कोई लौट ना आया सुनने
    खुद से मन की बात हुई
    भूल गये स्नेह ममता के रिश्ते
    देख ना पाए हिय के छाले
    जाने कहाँ बसाई बस्ती ?
    तोड़ निकल गये मन के शिवाले !
    मन को भिगोने वाली रचना के लिए साधुवाद | सस्नेह

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  9. मां-बाप की दुनिया भूल गए
    अगर वो वापस न आए तो
    सोचकर मन घबरा जाए
    बूढ़ी आँखों से छलक कर
    आँसू गालों पर आ जाएं
    सच में भूल गए,तरसती मां बिना कुछ निहारती सूनी आंखों से कि जो भूल गए
    शायद उन्हें मेरी पीड़ा का एहसास हो, लेकिन यथार्थ इससे परे है।

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  10. हृदय स्पर्शी रचना,सादर स्नेह

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