Monday, July 23, 2018

मकां तो सब बनाते हैं

मकां तो सब बनाते हैं
खूब शान से सजाते हैं
रखते हैं हर साधन
धन भी खूब लगाते है
रंगते है महंगे कलर से
प्यार का रंग नहीं भरते
मकां तो सब बनाते हैं
पर घर नहीं बनाते हैं
घर बनता है प्यार से
घर बनता है एहसास से
घर की नींव होती है माँ
जो बांधती है रिश्तों को
भावनाओं की दिवारों से
रंगती प्यार के रंग से
संस्कारों की महक भरती
पिता घर की छत जैसे
बचाते गम की धूप से
मुश्किल की जो बारिश हो
छा जाते है छतरी से
माँ बाप की छाया में
कई रिश्ते पनपते हैं
वो भरते रंग हैं घर में
मकां को घर बनाते हैं
अगर रिश्ते न हो घर में
वह घर नहीं मकां होता
मकां तो सब बनाते हैं
पर घर नहीं बनाते हैं
***अनुराधा चौहान***



13 comments:

  1. बहुत ही शानदार रचना।
    बहुत अच्छा लिखा .......लाजवाब।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी

      Delete
  2. अच्छी रचना। भावनाओं की कसौटी पर खरी उतरी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय

      Delete
  3. सही कहा है घर प्रेम और आधार से बनता है ...
    माँ के स्नेह से ... रिश्तों से स्नेह से ।।.
    भावपूर्ण रचना है ।।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय

      Delete
  4. अगर रिश्ते न हो घर में
    वह घर नहीं मकां होता
    मकां तो सब बनाते हैं
    पर घर नहीं बनाते हैं
    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, अनुराधा दी।

    ReplyDelete
  5. जी अवश्य पम्मी जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना का"पांच लिंकों का आनंद में"स्थान देने के लिए 🙏

    ReplyDelete
  6. वाह!! बहुत ही लाजवाब रचना ,खूबसूरत भावों से भरी..प्रिय सखी ..।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सखी 🙏🙏

      Delete
  7. धन्यवाद आदरणीय अमित जी

    ReplyDelete
  8. आजकल तो सब मकान ही बना रहे हैं....मकान बनाने की जद्दोजहद में घर खो गए हैं। आपने यथार्थ को सुंदर अभिव्यक्ति दी है इस रचना में....

    ReplyDelete