Thursday, August 30, 2018

जमाना बैरी बन बैठा

ख्वाबों के महल बहुत बड़े हैं
राह में अजगर बहुत पड़े हैं
कैसे मंज़िल को में पाऊँ
जमाना बैरी बन बैठा
राह में आगे बढ़ते जाते
जब निकलूँ में किसी मोड़ से
खड़े मिलते वहाँ हैवान
जमाना बैरी बन बैठा
कठिनाई भरा नारी जीवन
सबके मन की करते करते
जहाँ ऊँची भरी उड़ान
जमाना बैरी बन बैठा
सबके संग प्यार बाँटकर
सबको अपने साथ जानकर
हमने थोड़ा जीना चाहा
जमाना बैरी बन बैठा
किसी के संग दो बातें करली
किसी के संग जरा क्या हँसली
सच्चाई को बिना ही समझे
मचता हाहाकार
जमाना बैरी बन बैठा
कब तक यह रीत चलेगी
नारी यूँ ही झुकती रहेगी
छू पाएगी क्या आकाश
जमाना बैरी बन बैठा
***अनुराधा चौहान***


30 comments:

  1. सही है। बैरी बने जमाने से लड़ना ही होगा अपने वजूद की खातिर ....

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  2. पिंजरा तोडना होगा .आकाश को गले लगाना होगा .
    शानदार रचना

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  3. बहुत ही सुंदरता से बताया सखी के नारी के जज्बातों के क्या क्या परिणाम होते हैं। सार्थक रचना।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाती है

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  4. धन्यवाद नीतू जी

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  5. आज की नारी कमजोर नहीं सशक्त है। जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी धाक जमा चुकी हैं। बस उन्हें स्नेह और प्रोत्साहन की आवश्यकता है।

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    1. जी सही कहा आपने धन्यवाद आदरणीय 🙏

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  6. स्त्री के लिए जमाना हमेशा से ही बैरी है | उसे अधिकार कभी भी थाली में सजा कर नहीं मिलेंगे , संघर्ष उसे ही करना होगा ....सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏

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  7. बहुत सुंदर रचना सत्य की दिखती हुई बहुत कुछ बदला है और अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है... नारी को स्वयं ही उठकर ससक्त बनना है..

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    1. धन्यवाद सुप्रिया जी

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  8. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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    1. धन्यवाद आदरणीय संजय जी

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  9. भावनाओं का मार्मिक वर्णन

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    1. धन्यवाद आदरणीय जीवन जी

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  10. प्रेरणादायक रचना

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  11. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. धन्यवाद श्वेता जी आपने मेरी रचना का चुनाव कर मुझे उत्साहित किया आभार आपका

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  12. बहुत सुन्दर सृजन ।

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  13. मार्मिक पंक्तियां जो समाजिक व्यथा को दर्शाती है।

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