Wednesday, September 12, 2018

क्षितिज के पार

कभी सुनी थी
बचपन में
एक कहानी
क्षितिज के पार
एक दुनिया सुहानी
सुंदर सुंदर
बाग बगीचे
उड़ते सब और
उड़न खटोले
कल कल करती
नदियां बहती
आसमां से
चाकलेट गिरती
स्वर्ग से सुंदर
उस दुनिया में
रहती है एक
परियों की रानी
न मचता कोई
कोलाहल वहां
न कभी होती
कोई मारामारी
क्षितिज के पार
की उस दुनिया में
छाई रहती
हरदम खुशहाली
नहीं रहना मुझे
अब इस दुनिया में
कंक्रीटों के इस
जंगल में
खुशियों की है
तलाश मुझे भी
ले जाए कोई
उस पार मुझे भी
जहां होती है
खुशियों की बारिश
कल की रहती
कोई फिकर नहीं
बहुत सुंदर है
और न्यारी
क्षितिज के पार की
दुनिया सुहानी
***अनुराधा चौहान***



14 comments:

  1. वाह क्या कहने, बाल सुलभ मन सी पावन अभिव्यक्ति
    बहुत सुंदर सखी ।

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  2. सुंंदर स्वपनिल सी बातें बहुत सुहानी..

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    1. बहुत बहुत आभार पम्मी जी

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  3. वाह बहुत ही सुंदर

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  4. बहुत सुंदर पंक्तियाँ वाह

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी

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  6. इस सुहानी दुनिया की कल्पनाएँ मन को बहुत गुदगुदाती हैं ...
    काश होती कहीं ऐसी दुनिया ...

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाती है

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  7. स्वप्निल कल्पना लोक की सुहानी मनभावनी रचना...
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर

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  8. वाह, एक नई तरह की यह अभिव्यक्ति बहुत पसंद आई।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी

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