Friday, October 5, 2018

मन में हौंसला हो

जिद है छूनी ऊंचाईयाँ
मुश्किलों से फिर क्यों डरना
मन में हौंसला हो
संघर्ष की राह निकलना
खुद चलकर आए मंजिल
यह मुमकिन नहीं होता
मार कर ही हथौड़ा
पत्थर को तोड़ना है
हवा में किले बनाकर
नहीं जिंदगी संवरती
कुछ पाने की चाह है तो
सुख पीछे छोड़ना है
गर हौंसला बुलंद हो
फिर कदम नहीं रुकते
जीवन की आंधियों में
दिये कर्म के ही जलते
लड़ कर चुनौतियों से
पर्वत से राह निकलती
मन में हौंसला हो
जीने की चाह निकलती
***अनुराधा चौहान***




17 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना 👌👌

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  2. सुंदर शब्दों से सुंदर कविता बुनी है बधाई

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    1. धन्यवाद आदरणीय आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

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  3. वाह सुन्दर रचना

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  4. वाह ! हौसलों को पर्वाज़ देती ख़ूबसूरत रचना।

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    1. धन्यवाद आदरणीय रविंद्र जी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका

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  6. बहुत ही सुन्दर कविता सखी

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    1. बहुत बहुत आभार अनिता जी

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    1. धन्यवाद आदरणीय सतीश जी

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  8. वाहः लाजवाब रचना

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    1. धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी

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  9. वाह!लाजवाब रचना

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    1. धन्यवाद आदरणीय अंकित जी

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