Wednesday, December 5, 2018

रिश्तों के मायने


भीड़ कितनी भी हो मगर
पर तन्हाईयां रास आतीं हैं
होती है कुछ वेदना भरी 
स्मृतियां मन मस्तिष्क से 
नहीं निकल पातीं हैं
ऐसे ही जब कोई अपना
असमय ही साथ छोड़ जाता है
मन में सिवाय वेदना के 
कुछ भी नहीं रह जाता है 
इक क्षण में बिखर जाते हैं
रिश्तों के मायने टूट कर
द्वेष पाल कर बैठ जाते हैं
वेदना पहुंचाने मेंं अक्सर
जीवन में कई मोड़ लेकर
आते हैं जिंदगी के रास्ते
कहीं कहीं फूलों भरे हैं
कहीं भरे असंख्य कांटो से 
कभी कभी कह दी जाती है
कुछ बातें अनजाने में
एक पल भी नहीं सोचते हैं
हम उसे वेदना पहुंचाने में
लौटकर नहीं आती हैं
जो बातें ज़बान से निकले
मन ही मन तड़पातीं हैं
जो गर ख्याल से न निकले
क्यों खुद की खुदगर्जी में
इतना खो जाते हैं लोग
वेदना पहुंचाकर मन को
फिर हो जाते हैं मौन
कोशिश हर इंसान की
अपनेपन की होनी चाहिए
कभी भूले से न देना किसी को दर्द
वो इंसानियत होनी चाहिए
***अनुराधा चौहान***

9 comments:

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    1. धन्यवाद रविन्द्र जी

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    1. धन्यवाद उर्मिला दी

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  3. बेहतरीन रचना आदरणीया 👌
    ऐसे ही जब कोई अपना
    असमय ही साथ छोड़ जाता है.....मार्मिक रचना

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  4. काश आपका कहना सच हो ... हर इंसान दुसरे के दर्द में सहभागी हो न की दर्द दे ...
    मार्मिक रचना ...

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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