Thursday, January 31, 2019

यादें

सावन बीत गया
बीत रहा बसंत
पतझड़-सा हो गया
जीवन का सफ़र
मन में बसाए हसीं
लम्हों की सुनहरी याद
ढलती जाए उमर
समय की चाल से
सब कुछ बदल जाता है
वक़्त की तेज रफ्तार में
रिश्ते भी सूखे पात से
उड़ जाते बहार में
ज़िंदगी का बसंत 
फिर लौटकर नहीं आता 
ज़िंदगी का भी दामन
छूटता जाता है
तब यादों के ख़ज़ाने से
निकलते हैं कुछ छिपे हुए
दर्द, तड़प और तन्हाई
कुछ प्यारी-सी यादें
कुछ टूटे सपनों की किर्चें
तो कुछ अनमोल सौगातें
मस्ती भरी याद बचपन की
मनभाती अल्हड़ जवानी
बीत जाते कब यह पल
यादें रह जाती हैं बाकी
***अनुराधा चौहान***

14 comments:

  1. मस्ती भरी याद बचपन की
    मनभाती अल्हड़ जवानी
    बीत जाते कब यह पल
    यादें रह जाती हैं बाकी
    लाजबाब ...,स्नेह सखी

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  2. बहुत सुंदर बस यादें रह जाती

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ४ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सहृदय आभार श्वेता जी

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  4. यादों की महकती अनुभूतियों के साथ - ढलते जीवन की वेदना को बखूबी लिखा आपने अनुराधा जी | सस्नेह शुभकामनायें |

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    1. बेहद आभार प्रिय रेणु जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

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  5. सही कहा हर पल की यादे बाकी रह जाती हैं...
    बहुत सुन्दर ...लाजवाब...

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    1. बेहद आभार प्रिय सुधा जी

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  6. बस यादें जीवन की वेदना को बखूबी लिखा

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय संजय जी

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