Thursday, February 7, 2019

चुभती नजर

यह चुभती-सी नजर
भेदती हैं तन को
करती छलनी मन को
कुछ टटोलती-सी
हर नारी के देह को
एक अजीब-सा भाव
यह चुभती-सी नज़रें
आत्मा को घायल करती
हर गली हर चौराहे पर
चेहरे पर कुटिल मुस्कान
यह चुभती-सी नजरें
व्यथित करती मन
नजरंदाज कर देते सब
इनके बेढंग रवैए को
इसलिए ले बुलंद
हौसलें अपने
यह करते हुड़दंग हैं
मासूमों की ज़िंदगी
से खेल जाते
कर देते उनकी
अस्मत को तार-तार
खुलेआम धज्जियां उड़ाते
हर नियम हर कानून की
कल भी यही था
आज भी वही ढंग है
कमी समाज की सोच की
और इनके संस्कारों की
ना हीं इनके कुकर्मों पर
किसी की नज़र है
और ना ही इन्हें
किसी का रहता डर है
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

15 comments:

  1. हृदयस्पर्शी चिन्तन के साथ सुन्दर सृजन अनु जी !

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  2. दिल को छूती रचना,अनुराधा दी।

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    1. धन्यवाद प्रिय ज्योती बहन

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  3. बहुत सुन्दर 👌👌👌

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    1. हार्दिक आभार नीतू जी

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  4. बहुत सुंदर रचना..... ,सत्य हैं ,सादर स्नेह सखी

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  5. बहुत सुन्दर रचना सखी
    सादर

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  6. सहृदय आभार श्वेता जी

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  7. वाह बहुत सुन्दर गहन रचना सखी ।
    नाखुन लिये जो बैठी उन आंखों से बचे कैसे कोई
    हाथो के खंजर दिख जाते आंखों से बचे कैसे कोई।

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  8. बहुत सुन्दर सार्थक....
    यह चुभती-सी नजर
    भेदती हैं तन को
    करती छलनी मन को
    कुछ टटोलती-सी
    हर नारी के देह को
    एक अजीब-सा भाव
    यह चुभती-सी नज़रें
    आत्मा को घायल करती
    गहन चिन्तनीय...

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  9. चुभती-सी नज़रें
    आत्मा को घायल करती
    हर गली हर चौराहे पर
    चेहरे पर कुटिल मुस्कान
    यह चुभती-सी नजरें
    व्यथित करती मन. ..बहुत ही सुन्दर वर्णन सखी
    सादर

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