Wednesday, February 6, 2019

मन की पतंग

मन एक पतंग
आशा की डोर बंधी
ख्वाहिशों को
साथ लेकर
मंज़िल की ओर उड़ी
चाह है गगन छुए
हवाएं रुख़ बदलती
विचारों के धागों में
जाकर कहीं उलझती
पर फिर भी
हौसला न छोड़ती
लहराती,
डूबती-उतरती
मजबूत होती
आशा की डोर
विचारों के बादलों से
जीतने की होड़ है
ज़िंदगी की
हलचलों पर
नहीं चले किसी का जोर
मजबूत हो गर
आशा की डोर
रुख़ पतंग का मोड़ दे
हवा चले जिस ओर
***अनुराधा चौहान***

2 comments:

  1. मन एक पतंग
    आशा की डोर बंधी
    ख्वाहिशों को
    साथ लेकर
    मंज़िल की ओर उड़ी
    चाह है गगन छुए.. ..बहुत सुन्दर रचना सखी
    सादर

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