Sunday, April 7, 2019

वजह थी तेरी बेरुखी

तन्हा तन्हा -सी है अब
यह ज़िंदगी तुम बिन
कुछ यादें कुछ बातें
कुछ लम्हे तेरे वादे
कैसे भूल जाऊं ज़िंदगी
जो ज़ख्म तूने दिए थे
यह दर्द और बेकरारी
छाई जीवन में उदासी
है दामिनी तड़कती
घटाएं शोर करती
हवाओं ने रुख़ है बदला
आई यह रात काली
जो फासले हमारे दरमियान
वजह थी तेरी बेरुखी
मन में मेरे हरपल
यादें तेरी है बसी हुई
मैंने हर अपमान सहा
हर रिश्ते का मान रखा
जब चोट लगी दिल को
बिखर गए सपने सभी
बह गए इन आँसुओं में
इस दिल के सारे भरम
गलतियां तुम्हारी नहीं
विचार हमारे मिले नहीं 
चाह थी सात जन्मों की
संग जीने-मरने की
पर कुछ कदम भी हम
एक-दूजे के साथ न चल सके
  ***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

12 comments:

  1. वाह ....
    बहुत खूब
    बेहतरीन सृजन

    चाह थी सात जन्मों की
    संग जीने-मरने की
    पर कुछ कदम भी हम
    एक-दूजे के साथ न चल सके

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    1. धन्यवाद रवीन्द्र जी

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  2. जीवन की विडम्बना है ... कई बार साथ नहीं होता मुकम्मल ... शायद इसी को जीवन कहते हैं ...

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/04/2019 की बुलेटिन, " ८ अप्रैल - बहरों को सुनाने के लिये किए गए धमाके का दिन - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. सहृदय आभार शिवम् जी

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 10 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. हृदयस्पर्शी सृजन अनुराधा जी ।

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  6. वाह!!खूबसूरत सृजन!!

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  7. बहुत सुंदर..विरह व्यथा 👍👌👌

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  8. वाह !बहुत सुन्दर सखी
    सादर

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  9. उदासी एवं तन्हाई का अहसास कराती हुई बेहतरीन शब्द रचना

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