Friday, May 17, 2019

अजनबी-सा व्यवहार

क्यों अजनबी-सी लगे
हवाएँ जो मुझे छूकर चले
बेगाना-सा एहसास लिए
कहीं कोई तारा टूटे

सागर की लहरें भी चुप-सी
किनारों से हैं कुछ रूठी-सी
अपने ही अंदर कुछ बुनता-सा
सागर भी है गुमसुम-सा

घिरा है घटाओं से घनघोर
बादल हैं गुमसुम न करे शोर
अपने अंदर सैलाब को रोके
क्यों खुद को बरसने से रोके

किसी की तड़प है यह
या अजनबी का है इंतजार
क्यों कर रही फिजाएं आज़
अजनबी-सा व्यवहार

कोई आह है टूटे दिल की 
जो बेचैन होती है कुदरत भी
कुमुदिनी भी खिलती नहीं
रात रही है गुजर

बस चाँद ही है पूनम का
किसी बात पर मुस्कुराता हुआ
चाँदनी को भेज ज़मीं पर
सबको जगाता हुआ-सा

शायद उसे मालूम है
इस बेचैनी का हर राज़
इसलिए चांँदनी ले आई पैगाम
किसी अजनबी के आने का आज
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

13 comments:

  1. कोई आह है टूटे दिल की
    जो बेचैन होती है कुदरत भी
    कुमुदिनी भी खिलती नहीं
    रात रही है गुजर
    बहुत सुंदर.... सखी ,सादर

    ReplyDelete
  2. वाह सुंदर भाव अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  3. ख़ूबसूरत हृदयस्पर्शी रचना

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर !
    विरह की पीड़ा भुला !
    अब तो मिलन-ऋतु आ गयी !

    ReplyDelete
  5. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, अनुराधा दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सहृदय आभार ज्योती बहन

      Delete
  6. सुंदर काव्य सृजन सखी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार प्रिय सखी

      Delete
  7. बेहतरीन सृजन प्रिय सखी
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार प्रिय सखी

      Delete