Thursday, July 4, 2019

किताब जैसी ज़िंदगी

रोज नयी इबारतें लिखते
रोज नया ख्व़ाब गढ़ते
सुख के पन्ने बार-बार सहेजते
पर दुःख के पन्ने पलट नहीं पाते
अनेकों तस्वीरें सहेजे
किताब जैसी है ज़िंदगी
जाने कितने पाठ पढ़ लिए
जाने कितने बाकी रह गए
ज़िंदगी की ऊहापोह में फंसे
कभी दुःख के कभी सुख के
कितने इम्तहान बाकी रह गए
पास-फेल के खेल में
फेल हुए तो अध्याय बंद 
फिर पढ़ी किताब की तरह
यादें अलमारी में बंद हो जाती
पास हुए तो ज़िंदगी आगे बढ़ती
ज़िंदगी की किताब में
फिर एक नया अध्याय जोड़ती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. वाह!!सखी ,बहुत सुंदर !

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  2. वाह बहुत खूब

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    1. हार्दिक आभार सुजाता जी

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  3. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  4. वाह !बेहतरीन सृजन सखी
    सादर

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