Friday, July 5, 2019

संस्कारों का दहन

युग बदला रीत बदली
इस दुनिया में प्रीत बदली
संस्कारों की झोली खाली
बंद अलमारी किताबों वाली
रीति-रिवाज दकियानूसी
होते संस्कार अब मशीनी
इंग्लिश बनी दिल की रानी
संबंधों की महत्ता भुला दी
चाचा,मामी शब्द पुराने लगते
अंकल,आंटी में सिमटे रिश्ते
बच्चे भी बेबी,पति-पत्नी भी बेबी
रिश्तों का यह गणित बड़ा हेवी
नमस्कार की जगह हाय,बाय,टाटा
हिंदी संस्कारों पर लगा चांटा
बातचीत के बोल सिमट गए
टुकड़ों में सब शब्द सिमट गए
मोहब्बत भी चार दिन वाली
नहीं बनी तो तलाक की बारी
पाश्चात्य संस्कृति का बढ़ता महत्व
भारतीय संस्कारों का करता दहन
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

16 comments:

  1. मोहब्बत भी चार दिन वाली
    नहीं बनी तो तलाक की बारी
    पाश्चात्य संस्कृति का बढ़ता महत्व
    भारतीय संस्कारों का करता दहन
    बहुत खूब

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  2. पाश्चात्य संस्कृति का बढता महत्व
    भारतीय संस्कारों का करता दहन
    संस्कारों की झोली खाली
    बंद अलमारी किताबों वाली
    यथार्थ जीवन का प्रस्तुत करती रचना

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  3. वाह!!बहुत सुंदर सखी ।

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  4. सहृदय आभार सखी

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  5. बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति सखी।
    सम सामायिक बदलते चिंतन और सोच पर ।

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  6. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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    1. जी अवश्य... धन्यवाद

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  7. बहुत खूब... सटीक...
    वाह!!!

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  8. संस्कारों का दहन गर्त में ही ले जा रहा है उन्सान को ... स्वछन्द जीवन संस्कारों के साथ न हो तो बे-लय हो जाता है ..

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