Monday, September 9, 2019

अहम के शिकार

अपने अहम के शिकार हुए
अब सबसे अलग-थलग बैठे
अहंकारी व्यक्ति का जीवन
बस अकेलेपन में ही बीते है
जब तक रहता माल जेब में
चापलूस कई मिल जाते हैं
पूरे हो जाते हर सपने
बस अपने ही खो जाते हैं
तिनका-तिनका जोड़ा था जो
जिस दिन मिट्टी में मिल जाता है
मुश्किल घड़ी में गले लगाने
अपनों का हाथ आगे आता है
पल दो पल के यह साथी
पल दो पल ही साथ निभाएंगे
करो शिकार खुद अहम का अपने
शिकारी बाहर से न आएंगे
भाई-बहन और बन्धु सखा से
मत तोड़ना नेह के धागे
बहुत बड़ी होती है ज़िंदगी
क्यों जीवन के सच से भागे
***अनुराधा चौहान***

10 comments:

  1. वाह सखी बहुत सुंदर बात कही आपने रचना के माध्यम से ।
    सच रिश्तों को सहेजो ।

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    1. हार्दिक आभार प्रिय सखी

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  2. बहुत सुन्दर सृजन सखी👌)
    गौण हो रहा है विनम्रता का भाव,अहम कि कर रहे सब सवारी
    नहीं रिश्तों की फ़िकर नहीं अपनों |
    सादर

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  3. पर कई दफ़ा ख़ून के तथाकथित भाई-बहन या भाई-भाई के रिश्ते को भी मात दे जाते हैं , कुछ समानुभूति वाले रिश्ते, बस यूँ ही ...
    वैसे प्रथमदृष्टया लौकिक दुनिया की कहानी कहती अच्छी रचना ...

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. बेहतरीन रचना अनुराधा जी

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  5. बहुत सुंदर कविता।

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