Wednesday, November 6, 2019

चले आना ना रुकना तुम

चले आना ना रुकना तुम
न कहना कि बंदिशें हैं
यह बंदिशें हट जाएंगी
अगर दिल में मोहब्बत है

हवाए अब लाख मुँह मोड़ें
रोकें से रुकें ना हम
गुजर रहें हैं हसीं लम्हें
कोई अब न रोके पथ
चले आना......

मेरे इस मौन निमंत्रण को
नहीं ठुकरा देना तुम
कहीं लोगों की बातों में
न मुझको भूल जाना तुम
चले आना.....

गवाह यह वादियाँ सारी
गवाह चाँद-तारे भी
उमर ना बीत जाए सारी
तेरे इंतज़ार में ही
चले आना.....

चले आएं हैं ठुकराकर
ज़माने की बंदिशों को
नहीं जाना हमें लौटकर
छोड़ आएं राहों को
चले आना .....
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

19 comments:

  1. जिस के लिए हम अपनी राहों को छोड़कर, घर बार ठुकरा कर आये है तो उसको भी चाहिए कि वो भी सब आडम्बरों को त्याग कर साथ निभाये।
    बहुत सुंदर रचना।

    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख 

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  2. चले आना ना रुकना तुम,
    न कहना कि बंदिशें हैं।।
    गजब का साधिकार आह्वान प्रेम की सम्पूर्णता के लिए | सरस सरल लेखन जिसमें निर्मल भावों की सादगी बहुत मनमोहक है | सुंदर लेखन के लिए शुभकामनायें प्रिय अनुराधा बहन |

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    1. हार्दिक आभार प्रिय रेणु जी आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरा उत्साह बढ़ाती है 🌹🌹🌹🌹

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  3. वाह बेहद खूबसूरत

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  4. अति सुन्दर मनोहारी रचना

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-11-2019) को "भागती सी जिन्दगी" (चर्चा अंक- 3513)" पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    -अनीता लागुरी 'अनु'

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  6. बहुत भावुक रचना।

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  7. समर्पित भावों से सुसज्जित मनोरम सृजन अनुराधा जी ।

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  8. बहुत सुंदर रचना सखी!
    मन के अगनित कोमल भावों का सुक्ष्म प्रर्दशन करती सरस रचना।

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    1. हार्दिक आभार सखी 🌹🌹

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  9. वाह बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  10. मेरे इस मौन निमंत्रण को,
    नहीं ठुकरा देना तुम।
    कहीं लोगों की बातों में
    न मुझको भूल जाना तुम
    चले आना ना रुकना तुम
    न कहना कि बंदिशें हैं

    बहुत ही सुंदर... सृजन ,सखी

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