Sunday, November 3, 2019

पलकों में सपने सँजोये

पलकों में सपने सँजोये,
आस मन पलती रही।
छवि बसी आँखों में तेरी,
धार बन बहती रही।।

खोजती हूँ निशान तेरे,
दूर जाती  राह में।
छोड़ सब संग चल पड़ी हूँ,
विश्वास ले चाह में।
गूँजती मन बातें  तेरी, 
मिसरी उर घुलती थी।
पलकों में सपने सँजोये,
आस मन पलती रही।।

आस मन में तेरी लिए हम,
प्रेम डगर पे चल दिए।
पता नहीं तेरा ठिकाना,
खोजने तुझे चल दिए।
ढूँढ रही अब हर दिशा में,
धूप में चलती रही।
पलकों में सपने सँजोये,
आस मन पलती रही।।

धूप में तपी जिंदगी को
प्यास तड़पाती रही।
पाँव में उभरे हैं छाले,
राह थी काँटो भरी।
घूरती लोगों की नजरें,
हृदय को खलती रही।
पलकों में सपने सँजोये,
आस मन पलती रही।।
***अनुराधा चौहान***

10 comments:

  1. वाह बहुत सुंदर बहुत मोहक सखी ।

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  2. बहुत खूब ...
    मन में आस जिन्दा रहे हो हर कठिन राह पे भी चला जाता है इंसान खोजने ... यही ख़ोज जीवन बन जाती है ...

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  3. घर से निकलना ही दूभर है लोगो के लिए
    आप तो फिर भी राह में है, खोज पूर्ण करने की।
    बहुत ही प्यारी रचना।

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  4. बहुत खूबसूरत भाव लिए भावपूर्ण रचना अनुराधा जी ।

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  5. भावपूर्ण रचना ,सखी

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