Friday, November 8, 2019

लेखनी की शक्ति

कलम का प्रहार हो,
दो धारी तलवार हो,
मन मजबूत कर,
आवाज उठाइए।

बड़े-बड़े यहाँ चोर,
मंहगाई करे शोर,
जनता का लिखें दर्द,
लेखनी चलाइए।

डरती नहीं है यह,
खोलती है कान यह,
कमजोर समझ के,
भूल मत जाइए।

खोलती है यह राज,
लिखती है दिन-रात,
कलम की ताकत को,
कम मत मानिए।

लिखती है बार-बार,
एक ही करे पुकार,
लुट रही बेटियों की,
लाज को बचाइए।

बैठे आँख बंद कर,
ऊँची-ऊँची कुर्सियों पे,
अब आप-बीती भला,
किसको सुनाइए।

थक कर रुके नहीं,
लेखनी का धर्म यही,
बुराई से लड़ने में,
हार मत मानिए।

कोशिश हर जंग की,
अनेक रूप रंग की,
सच्चाई की राह चल,
सब अपनाइए।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

13 comments:

  1. लेखनी की ताकत को कम आंकने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
    आप लिखते वक्त कमाल ही कर देती हैं।

    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख 

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    1. जी हार्दिक आभार सखी

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  3. अनुराधा बिल्कुल सही और आपकी लिखने इसका प्रमाण है

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  5. थक कर रुके नहीं,
    लेखनी का धर्म यही,
    बुराई से लड़ने में,
    हार मत मानिए।
    बेहद प्रभावी रचना अनुराधा जी ।

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. कलम का प्रहार हो,
    दो धारी तलवार हो,
    मन मजबूत कर,
    आवाज उठाइए।
    बेहतरीन पंक्तियाँ लिखी हैं आपने आदरणीया । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  8. थक कर रुके नहीं,
    लेखनी का धर्म यही,
    बुराई से लड़ने में,
    हार मत मानिए।

    लाजबाब ,बहुत ही सुंदर सृजन सखी ,सादर

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