Friday, December 6, 2019

कानन(दोहे)

जंगल अब कंक्रीट के,लील रहे हैं गाँव ।
बूढ़े बरगद कट रहे,कहाँ मिले अब  छाँव ।।

गंध वाटिका खो रही,जल संकट से आज।
बिन जल मानव का नहीं,होगा कोई काज।।

कुसुमित कानन बीच में,मधुर प्रिया मुस्कान ।
कर जाती थी मौन ही,प्रियतम का प्रिय गान।।

कानन में क्रीड़ा करें,बेटी-चिड़िया संग।
वे भी मर्माहत हुए,हुआ मनुज बेढंग।।

कानन हरियाली घटी,सूखे सरिता ताल।
पर्यावरण विषाक्त है,नाच रहा सिर  काल।।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

13 comments:

  1. बहुत सुंदर दोहे ,सखी

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    1. हार्दिक आभार नितिश जी

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०८ -१२-२०१९ ) को "मैं वर्तमान की बेटी हूँ "(चर्चा अंक-३५४३) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  5. बहुत सुन्दर दोहे अनुराधा जी ।

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  6. बहुत सुंदर सार्थक दोहे

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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