Monday, February 17, 2020

भावनाओं के भँवर

डूब रही नाव भँवर में,
मिला कहाँ अभी किनारा।
भावनाओं के भँवर में,
डूब गया मन बेचारा‌।

सींचते रहे मन में हम,
आशाओं के पौधों को।
मार्ग से चुन-चुन हटाते,
उगे हुए अवरोधों को।
खिल सकी न कोई कलियाँ,
महका न ये मन हमारा।
भावनाओं के भँवर में,
डूब गया मन बेचारा‌।

स्वप्न पालकी बैठी में,
ढूँढती रही घर मेरा।
झील सुंदर देख बैठी,
कमल खिला एक सुनहरा।
तोड़ने बैठी किनारे,
सपना कब हुआ हमारा।
भावनाओं के भँवर में,
डूब गया मन बेचारा‌।

खोजती पगडंडियों पर,
मैं छाप अपने पाँव की।
कहीं किसी कौने निकली,
यादें किसी के नाम की।
कह रही हवाएँ हौले,
देख टूटा है सितारा।
भावनाओं के भँवर में,
डूब गया मन बेचारा‌।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

11 comments:

  1. यदा-कदा ही हम भावनाओं से पार पा पाते हैं।
    वरना कविता की पंक्तियों की ही तरह भावनाओं के भंवर में डूब जाते हैं..!
    हमारी कविता हमारे जीवन का अक्स होती है हमारी मनोस्थिति कविता में झलकती है... बेहतरीन प्रयास लेकिन अगली बार आप आशा और विश्वास से भरे कविताएं लेकर आएंगी... धन्यवाद

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  2. स्वप्न पालकी बैठी में,
    ढूँढती रही घर मेरा।
    झील सुंदर देख बैठी,
    कमल खिला एक सुनहरा।
    तोड़ने बैठी किनारे,
    सपना कब हुआ हमारा।
    भावनाओं के भँवर में,
    डूब गया मन बेचारा‌।
    बहुत ही सुन्दर भावप्रवण लाजवाब नवगीत
    वाह!!!

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  3. अति उत्तम भाव पूर्ण रचना

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  4. वाहहह!!!बहुत ही शानदार नवगीत 👌👌👌👌👌👌

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  5. तोड़ने बैठी किनारे,
    सपना कब हुआ हमारा।

    कह रही हवाएँ हौले,
    देख टूटा है सितारा।
    वाह आदरणीया ..!!!कभी कभी जीवन नाव जब हिचकोले लेती है तो यही भाव मन में उभरते हैं।
    बहुत खूबसूरत मनोहारी नवगीत 👌👌👌👌
    बहुत बहुत बधाई 💐💐

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    1. हार्दिक आभार पूजा🌹

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  6. खोजती पगडंडियों पर,
    मैं छाप अपने पाँव की।
    कहीं किसी कौने निकली,
    यादें किसी के नाम की

    बहुत सुंदर.... सखी ,सादर नमन

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